धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

स्वामी विवेकानंद जी के सपनों का भारत

स्वामी विवेकानंद जी एक प्रेरणा जिनके विचारों ने भारतीय समाज एवम् राष्ट्र के जीवन में एक नए प्राण का संचार किया जिनसे देश कि आत्मा को चैतन्यता से सराबोर किया। स्वामी जी ने अपने विचारो के जरिए “स्वधर्म” एवम् “स्वदेश” के लिए प्रेम स्वाभिमान की ऊर्जा प्रवाहित कर जाग्रत शक्ति का संचार किया जिसके फलस्वरूप भारतीय जनमानस के मन में अपने ज्ञान , परंपरा, संस्कृति, विरासत का गर्वपूर्ण कराया।
             स्वामी जी के अनुसार मनुष्य समाज की बुनियादी इकाई है। जबतक मनुष्य का उत्थान नहीं होगा तब तक देश समाज उत्थान अधूरा होगा अर्थात् मनुष्य निर्माण ही राष्ट्र का पुनरुद्धार है।
स्वामी जी के सपनो का भारत -:
   शिकागो सम्मेलन 1893 के दौरान उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा की  “”वेदांत”” के इस सत्य पर आधारित है कि विश्व की आत्मा एक और सर्व व्यापी है।
पहले रोटी और फिर धर्म ” मै ऐसे धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं करता जो असहाय के मुंह में एक रोटी का टुकड़ा भी नहीं रख सकता।”
तभी यूरोप और अमेरिका के धर्म विचारक एवम् प्रचारकों को झकझोरते हुए बोले कि “” भारत की पहली आवश्यकता धर्म नहीं है क्यों की वहां इस गिरी हुई हालत में भी धर्म मौजूद है ।
उन्होंने स्पष्ट घोषणा की ‘गरीब मेरे मित्र है ‘ और मै दरिद्रता को आदरपूर्वक मानता हूं। गरीबों का उपकार करना ही दया है ।
उन्होंने गुरु राम कृष्ण परमहंस के स्वर्ग्रोहन के बाद उनकी स्मृति में रामकृष्ण परमहंस मिशन की स्थापना की जिसका उद्देश्य गरीबों, अनाथो, बेबस एवम् रोगियों की सेवा करना था ।
स्वामी जी का मानना था कि ” मानवता के सत्य को पहचानना ही वास्तविक ‘ वेदांत ‘ है और यही उनका दिवा स्वप्न है।””
वे भारत का रक्त मज्जा से निर्मित साक्षात शरीर रूप है वे स्वयं ही भारत है।
— इंजी. सोनू सीताराम धानुक ” सोम” 

इं. सोनू सीताराम धानुक "सोम"

पता - शिवपुरी (मध्य प्रदेश ) शिक्षा - बी.ई. (सिविल ) पेशा - सिविल इंजीनियर, स्केच आर्टिस्ट, पेंटर, लेखन (हिंदी उर्दू शायरी, कविता, व्यंग्य )