कविता

कभी कभी

 

कभी कभी

कभी- कभी हाँ जी कभी- कभी,
हमको भी सोचना चाहिए खुद के लिए।

क्यों हम औरतें कभी कभी,
कुछ भी टाल देती है वो सब,
जो पसन्द होता हमको भी ,
यह कह कर की अकेले है ।।

करो वो सब काम भी रोज़,
जो पसन्द हो तुमको हमेशा,
खाओ अकेले भी कभी ,
क्योंकि तुम भी हो इंसान।।

करते रहो मन का भी कुछ,
घूमो फिरो क्योंकि ,
आज तुम आज़ाद हो,
अपनी कुछ जिम्मेदारी से ।।

कुछ पल जो आज मिले ,
खुद के साथ खुद के लिए,
जियो उन लम्हों को तुम,
ये दिन जो बीत गए न आएंगे ।

जब सभी के लिए करते थे,
खुशी होती थी अंतर्मन से,
खिला कर उनको तुम,
खुद को तृप्त समझती थी।।

आज उनकी खुशी है यह,
तुम जियो ज़रा खुद के लिए,
खुश हो जाओ दुबारा,
अपने लिए कुछ करके ।।

कभी कभी हाँ कभी कभी,
करो कुछ बेमन से खुद के लिए,
सोचो तुम खुद के लिए भी ,
तुम भी हो इंसान ।।

लेकिन तुम औरत हो ,
जो नहीं सोचती कभी,
खुद के लिए कभी भी,
औरत तुम क्यों हो ऐसी ?

सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।