त्यौहार की खुशियां
त्यौहार की खुशियां
कभी-कभी बनने वाले पकवानों
की खास महक
पहले जी बड़ा ललचाती थी,
तीज-त्यौहार के मौके पर जो
पहले कभी
रसोई ‘राजसी’ बनाई जाती थी।
इकट्ठे हो सारे कुटुम्ब की स्त्रियां
तैयारी में हाथ बंटाती थीं,
मिल-जुलकर काम करने से
खाने की खुशी
कई गुना ज्यादा बढ़ जाती थी।
सही मायनों में त्यौहार की
खुशियां
तब ही मनाईं जाती थी।
अब तो ‘पार्टियां’ त्यौहारों की
बाहर होटलों में कराई जाती हैं,
बच्चों को बातें संस्कारों की
अब कहां सिखाई जाती हैं।
पकवानों में भी अब वो बात
कहां पाई जाती हैं,
हर दूसरे-चौथे दिन खा लें तो
उनमें रुचि कहां रह जाती है।
सही मायनों में त्यौहार के
नाम पर अब बस
औपचारिकता निभाई जाती है।
जितेन्द्र ‘कबीर’
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र – 7018558314