ग़ज़ल
इंतज़ार करने से भी सब हासिल नहीं होता
जो दरिया है , वो कभी साहिल नहीं होता
ज़िन्दगी भले ही हो रोज़ नज़्र-ए-मसाइल*
खुदाया , ये दिल कभी बोझिल नहीं होता
वो मुझ तक आता है और गुज़र जाता है
बसा है नैनों में, रूह में शामिल नहीं होता
कैसे मानें कि बेहद कुछ अच्छा नहीं होता
इश्क़ जितना भी हो,वो फ़ाज़िल नहीं होता
कुछ तो बात है जरूर तुम में , सच जानो
वर्ना यूँ ही मैं किसी का काइल* नहीं होता
मैं चाहता हूँ कि अमन-चैन का जहान हो
मैं खुदा नहीं, मेरा कहा तामील नहीं होता
— सलिल सरोज
*नज़्र-ए-मसाइल*-परेशानियों से घिरा हुआ
*काइल-प्रशंसक