कुंडलिया
“कुंडलिया”
हँसते कुछ कुछ रो रहे, हैं भावों के रूप
ईमोजी के खेत में, चेहरे चर्चित चूप
चेहरे चर्चित चूप, धूप में छाँव तलाशे
बारिश की दीवार, कहाँ तक धरे दिलाशे
कह गौतम कविराज, नींव दलदल में फँसते
रिश्ता बिन महमान, देख सब यूँ ही हँसते।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी