दोहा
“दोहा”
उमड़ घुमड़ नभ छा रहे, ये ठंडी के मेह।
रात गई बादल घिरे, दिन में ठिठुरे देह।।-1
बूँद बूँद में है अमिय, औ बादल में बूँद।
धरती की अभ्यर्थना, भर दे गागर दूध।।-2
वरखा रानी आ तनिक, रख फसलों की चाह।
बिनु पानी गुलशन नहीं, बिनु दरख़्त कब छाँह।।-3
ऋतु वर्षा की यह नहीं, पर फसलों की चाह।
बुझा प्यास सावन प्रिया, नहीं ठंड परवाह।।-4
छाई है तू गगन में, धरा निहारे राह।
वर्षा हर्षित कर कृषक, उठती उर में आह।।-5
‘गौतम’ तेरे बाग में, भाँति भाँति के फूल।
धो देगी वर्षा सहज, जमकर बैठी धूल।।-6
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी