बाल लघुकथा – मयंक का बदलाव
अर्द्धवार्षिक परीक्षाएं नजदीक आ चुकी थी, परंतु मयंक अपनी पढ़ाई को छोड़ मोबाइल व लैपटॉप पर गेम खेलने में मस्त था | गेम खेलने से समय बचता तो उसे टेलीविजन पर कार्टून, सीरियल देखने में निकाल देता | देर रात तक इलेक्ट्रिक दुनिया में खोया रहकर सुबह देर से जागता, इसलिए कभी ठीक से होमवर्क भी पूरा नहीं करता, फिर चाहे गुरुजनों की कितनी ही डांट क्यों न खानी पड़े |
मयंक की नित्य प्रतिदिन वाली यही दिनचर्या बन चुकी थी | धीरे-धीरे उसके अंदर से उत्साह, स्फूर्ति, उमंग सब खत्म होने लगे | उसकी स्मरण शक्ति भी क्षीण होने लगी थी | वह हमेशा चिढ़ा – चिढ़ा सा रहने लगा | समय बीता अर्ध्दवार्षिक परीक्षाएं खत्म हुईं और परिणाम आया |मयंक जीरो बटा सन्नाटा वाला रिपोर्ट कार्ड लेकर घर पहुंचा तो उसके मां-बाप बहुत दुखी हुए | वे मयंक को लेकर चिंता में पड़ गये | उन्होंने मयंक के विषय में अपने एक रिश्तेदार अभय से बात की | अभय एक योगगुरु थे | उन्होंने मयंक के माता-पिता को एक बाल उपयोगी पुस्तक भेंट की और उन्हें कुछ जरूरी बातें भी बताईं |
घर आकर मयंक के माता-पिता ने सबसे पहले मयंक को बाजार ले जाकर उसे उसकी मनपसंद वस्तुओं को खरीदवाया फिर धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक उपकरणों से उसे दूर किया |
मयंक को सूर्योदय से पूर्व उठाकर स्नानादि करने की लत लगाई | नित्य योग, ध्यान, व्यायाम ,प्राणायाम करना सिखाया | कुछ समय बाद मयंक स्वयं ही उक्त सभी क्रियाएं करने लगा, क्योंकि अब उसे इन क्रियाओं में आनंद आने लगा था |
धीरे-धीरे मयंक की पूरी दिनचर्या ही बदल गई | अब उसका पढ़ाई में भी मन लगने लगा और जो पढ़ता था वो उसे बड़ी आसानी से याद भी हो जाता | उसकी स्मरण शक्ति तीव्र हो चुकी थी | हमेशा चिढ़ा – चिढ़ा सा रहने वाला मयंक अब खुश व शांत रहने लगा था |
समय बीता वार्षिक परीक्षाएं संपन्न हुईं | परीक्षा परिणाम आया तो मयंक पूरे विद्यालय में प्रथम आया | उसके इस बदलाव को देखकर पूरा विद्यालय दंग रह गया |
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा