लघुकथा – शराब अच्छी या बुरी?
” हमारा परिवार शाकाहारी है। हमारी पीढ़ियों में वर्षों से किसी ने शराब को छुआ तक नहीं है। ” आलोक ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया। थोड़ी देर बाद जब पहलवान को शराब चढ़ गई तो आलोक से फिर पूछा, ” अच्छा ये बताओ, शराब पीना अच्छी बात है या बुरी ? ” पहलवान द्वारा अचानक दागा गया सवाल सुनकर आलोक सकपका गया। खुद को कोसने लगा कि इस पहलवान के सामने बैठने की बेवकूफ़ी क्यों की ? खैर, जवाब तो देना ही था। ” मेरे जवाब से पहलवान असंतुष्ट हुए और मुझे यहीं चारों खाने चित्त कर दिया तो ? ” यही सोचकर वो कांप उठा। मन ही मन में सारे देवी – देवताओं का स्मरण करने लगा। प्रभु से प्रार्थना करने लगा कि ऐसी सद्बुद्धि दे, जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। आखिरकार थोड़ा सोचकर, हिम्मत जुटाते हुए कहा, ” जो पिए उसके लिए अच्छी, जो न पिए उसके लिए बुरी बात है। ” आलोक का जवाब सुनकर पहलवान के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट फैलने लगी। आलोक ने संतोष की सांस ली। उसे वो कहावत याद आयी, ” जान बची लाखों पाए …। ”
— अशोक वाधवाणी