कविता

छूट गया

जैसे जैसे कदम बढ़ते जाते है ,
छूट जाता है कुछ अपना ,
जो बसा होता है जहन में,

उस मिट्टी की खुशबू है ,
सांसों में बसी धड़कन सी,
नाम सुनते ही दिल तो,
बेकाबू से हो जाता है मेरा,

रोम रोम में बसी है ,
यादें ,महक वहां की ,
जिसको कैसे बिसरा दूँ,

वहीं की परवरिश है मुझमें,
संस्कृति जो है मुझमें बसी,
कैसे भूल जाऊँ मैं ,
हो जाऊं स्वार्थी सी

मेरा शहर याद आता है ,
मां के संस्कार है दिल मे ,
दूर हुँ परदेस में उससे,
वो ही तकलीफ देते है मुझे ।।

डॉ सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।