मेरी पूजा मेरी मां
चूल्हे पर जलती हांडी सी,
पल पल जलती मेरी मां।
भीतर भीतर बल्के फिर भी,
कभी न छलके मेरी मां।
अपनी पायलकी रूनझुन से,
सुबह जगाती सबको मां।
अवसादों के घोर अंधेरे,
अंतर्मन में छुपाती मां।
संघर्षों की कठिन डगर पर,
दिनकर बनकर चलती मां।
भीतर भीतर बल्के फिर भी,
कभी न छलके मेरी मां।
बनी प्रेरणा हम बच्चों की,
पाना लक्ष्य सिखाती मां।
कैसे बढ़े किधर को जाएं,
उजियारा दिखलाती मां।
आशाओं की नैया डोले,
बन पतवार संभाले मां।
भीतर भीतर बल्के फिर भी,
कभी न छलके मेरी मां।
बनकर चांद गगन में चमकूं,
हर्षित होकर डोले मां।
नाम करूं मैं रोशन जग में,
सपन संजोए मेरी मां।
मैं अपनी मां की हूं पूंजी,
मेरी पूंजी मेरी मां।
भीतर भीतर बल्के फिर भी,
कभी न छलके मेरी मां।
— सीमा मिश्रा