भारतीय कपि : हूलूक गिब्बन
कपियों की पूरे विश्व में चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं, गोरिल्ला, चिंपैंजी, ओरंगुटान और गिब्बन , इनमें गिब्बन सबसे छोटे होतें हैं। गोरिल्ला और चिंपैंजी अफ्रीका के जंगलों में,तथा ओरंगुटान बोर्नियो तथा सुमात्रा के जंगलों में एवं गिब्बन भारत,बाँग्लादेश, म्यांमार तथा चीन के जंगलों में पाये जाते हैं।
चिड़ियाघरों में आपने भारतीय गिब्बन (hoolock gibbon) को जरूर देखा होगा । इसे लोग हूक्कू बंदर भी कहते हैं।मगर ध्यान रहे कि यह बंदर नही है ,इसके पास बंदरो की तरह पूँछ नही होती ।
जैव वर्गीकरण के अनुसार यह वर्ग स्तनधारी के गण प्राइमेट्स की हैलोबैटिडी परिवार का सदस्य है ,यह मनुष्य का नजदीकी प्राणी है तथा इसका वैज्ञानिक नाम हूलूक हूलूक है।इसके अतिरिक्त इसकी दो अन्य प्रजातियाँ हूलूक ल्यूकोनेडिस एवं हूलूक तियांजिंग भी पाई जाती हैं ।
गिब्बन, भारत में केवल उत्तर पूर्व के प्रदेशों में मुख्यतया ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण के जंगलों मे ही पाये जाते हैं। शारिरिक संरचना की बात करें तो यह सबसे हल्के वजन का कपि है ,इसका कद 60-90 सेमी. एवं वजन 6-9 किग्रा. होता है,अगले पाँव ,पिछले पाँव से बड़े होते हैं। यह पेड़ो की शाखाओं पर अगले हाथों से लटकते हुए चलते हैं, जमीन पर आदमी की तरह खड़े होकर भी चल सकते हैं। नर गिब्बन का रंग काला होता है तथा भौंहें सफेद रंग की होती हैं एवं मादा भूरे रंग की होती है तथा आँखो एवं चेहरे के चारो ओर एक सफेद घेरा होता है।
हूलूक गिब्बन जोड़ो में पाये जाते हैं,तथा अन्य सदस्यों से आपस में संचार स्थापित करने हेतु यह हू..कू …हू..कू..कू…हू..कू की आवाज करते हैं ,शायद इसी कारण इन्हे हूलूक गिब्बन कहा गया है।
इनका गर्भाधान समय 7 महीने का होता है ,मादा मटमैले सफेद रंग के एक बच्चे को जन्म देती है जो छः महीने का होते होते अगर नर हुआ तो काले रंग का होने लगता है,मादा शिशु का रंग नही बदलता है , 9 साल की उम्र तक वयस्कता आ जाती है तथा इनकी औसत आयु 25 वर्ष होती है।
यह फल,फूल,पत्तियों ,तथा कीट पतंगों को खाकर जीते हैं।
भारतीय गिब्बन लुप्तप्राय जीवों की श्रेणी में आता है ,मानव गतिविधियों एवं जंगलों की कटाई के कारण इनके वास स्थान में कमी आई हैं जिस कारण इनकी संख्या बहुत तेजी से कम हुई है।तीस चालीस साल पहले। इनकी जनसंख्या लाखों में हुआ करती थी ,अब मात्र पाँच-छह हजार के लगभग बची है। हूलूक गिब्बन संरक्षित जीवों की श्रेणी में आता है तथा इसके शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध है।