मेरे देश की मिट्टी
भारत की सोंधी माटी की
ख़ुशबु जो दूर से आती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है
यह वतन हमारी मातृभूमि
इसका हर रूप निराला है
इसके उत्थान की ख़ातिर ही
अब मन में हुआ उजाला है
भारत माता के जयकारे
ये जिवहाँ करती जाती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है
देश में लोहड़ी आती है
देखो सब भंगडा पाते है
सर बांध केसरी बाना फिर
मस्ती में यूँ खो जाते है
ये त्योहारों की ख़ुशियाँ भी
मन को मलंग कर जाती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है
होली हो ईद दिवाली हो
सब मिलजुल साथ मनाते है
लगता है जैसे कई रंग
मिल इंद्रधनुष बन जाते है
है देश निराला मेरा यह
हाँ, अदभुत इसकी थाती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है
जश्ने आज़ादी का दिन हो
पर्व राष्ट्र का होता है
मन देशभक्ति में सराबोर
साक्षी ये तिरंगा होता है
मस्तक को झुका ये जीवहा
भारत की महिमा गाती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है।।
— अनामिका लेखिका