गीत/नवगीत

मेरे देश की मिट्टी

भारत की सोंधी माटी की
ख़ुशबु जो दूर से आती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है

यह वतन हमारी मातृभूमि
इसका हर रूप निराला है
इसके उत्थान की ख़ातिर ही
अब मन में हुआ उजाला है
भारत माता के जयकारे
ये जिवहाँ करती जाती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है

देश में लोहड़ी आती है
देखो सब भंगडा पाते है
सर बांध केसरी बाना फिर
मस्ती में यूँ खो जाते है
ये त्योहारों की ख़ुशियाँ भी
मन को मलंग कर जाती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है

होली हो ईद दिवाली हो
सब मिलजुल साथ मनाते है
लगता है जैसे कई रंग
मिल इंद्रधनुष बन जाते है
है देश निराला मेरा यह
हाँ, अदभुत इसकी थाती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है

जश्ने आज़ादी का दिन हो
पर्व राष्ट्र का होता है
मन देशभक्ति में सराबोर
साक्षी ये तिरंगा होता है
मस्तक को झुका ये जीवहा
भारत की महिमा गाती है
तन जोश नया भर जाती है
मेरे मन को महकाती है।।

— अनामिका लेखिका

अनामिका लेखिका

जन्मतिथि - 19/12/81, शिक्षा - हिंदी से स्नातक, निवास स्थान - जिला बुलंदशहर ( उत्तर प्रदेश), लेखन विधा - कविता, गीत, लेख, साहित्यिक यात्रा - नवोदित रचनाकार, प्रकाशित - युग जागरण,चॉइस टाइम आदि दैनिक पत्रो में प्रकाशित अनेक कविताएं, और लॉक डाउन से संबंधित लेख, और नवतरंग और शालिनी ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित कविताएं। अपनी ही कविताओं का नियमित काव्यपाठ अपने यूटयूब चैनल अनामिका के सुर पर।, ईमेल - [email protected]