मर-मरकर जीना होगा
मर-मरकर जीना होगा
जीने की खातिर हलाहल पीना होगा
अपने-पराये, दोस्त-दुश्मन
सबसे मिलना होगा
हँसना होगा, रोना होगा
मर-मरकर जीना होगा |
तिल-तिल जलना होगा
सूरज सा तपना होगा
घोर निराशा में भी चलना होगा
तिनका – तिनका चुनकर
नीड़ निर्माण करना होगा |
चिंता चिता से बड़ी –
चिंता से बाहर निकलना होगा
भूखा-नंगा रहकर भी हँसना होगा
क्यों लालच की गठरी बांधे
एक दिन मरना होगा
मर-मरकर जीना होगा…
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा