गीतिका
“गीतिका”
देख रहे सब नित एक ख्वाब
मैं माली और मेरा गुलाब
हाथों में जहमत का प्याला
मर्म सुकर्म पै चढ़ी शराब।।
देखो कितने पेड़ धरा पर
जश्न जतन बिन हुए खराब।।
नहीं नाचते मोर वनों में
कौन बाँचता खुली किताब।।
सेल फोन पर सुबह सुहानी
शाम थिरकती लिए ख़िताब।।
नई फसल जल राख हो रही
ब्यर्थ बह रहे नदी के आब।।
‘गौतम’ गमला रखो सजाकर
मत कर बिन मतलबी हिसाब।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी