गीतिका
“गीतिका”
दरवाजे पर ओस गिरी थी
खलिहानों में कोश गिरी थी
दिल्ली की सड़कों पर रेला
आंदोलन की धौस गिरी थी।।
बहुत मनाया सबने मन को
उठा पटक में रोष गिरी थी।।
कसक मसक कर रात गुजरती
दिन निकला पर जोश गिरी थी।।
गरम रजाई और दुशाला
ब्रेड बटर पर सोस गिरी थी।।
धन सबका बिल अन्नदाता का
बिच मंडी बा- होश गिरी थी।।
दूल्हा बिन बाराती ‘गौतम’
दुल्हन घर बेहोश गिरी थी।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी