गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका

“गीतिका”

दरवाजे पर ओस गिरी थी
खलिहानों में कोश गिरी थी
दिल्ली की सड़कों पर रेला
आंदोलन की धौस गिरी थी।।

बहुत मनाया सबने मन को
उठा पटक में रोष गिरी थी।।

कसक मसक कर रात गुजरती
दिन निकला पर जोश गिरी थी।।

गरम रजाई और दुशाला
ब्रेड बटर पर सोस गिरी थी।।

धन सबका बिल अन्नदाता का
बिच मंडी बा- होश गिरी थी।।

दूल्हा बिन बाराती ‘गौतम’
दुल्हन घर बेहोश गिरी थी।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ