ग़ज़ल
इश्क़ ने ये कमाल किया
हमारा जीना मुहाल किया
जो घटाएँ बरसाया करती थी
हर मौसम मेरा अकाल किया
कुछ को पल में बर्बाद किया
पर हमें तो सालों-साल किया
जिस का जवाब था ही नहीं
बार – बार वही सवाल किया
ये तीरगी* की हद ही तो है
चिंगारी को भी मशाल किया
सारे रिश्ते नेस्तनाबूद किए
माजी का भी न ख्याल किया
— सलिल सरोज
*तीरगी-अन्धकार
*माजी-अतीत