गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दिलो  के  दरम्यां ये  फ़ासला, हमें मंजूर नही।
अधूरा अधूरा सा  सिलसिला, हमें मंजूर नही।
सो गए है ये चाँद +सितारे भी, मगर वो न आये,
शबे वस्ल  का ये  झूठा वादा, हमें मंजूर नही।
दो  दिल  मिल  न  पाए, मौहब्बत  के साये में,
गर  यही  है  रब  दा  फैसला, हमें मंजूर नही।
आये हो नजदीक तो ,हटा  लो जुल्फें चेहरे से,
हुजुर  ये  चिलमन, ये  परदा, हमें  मंजूर नही।
इन्सां  इन्सां  के  बीच, मजहब  की हो दीवारें,
अहले  जहाँ  तेरा ये  कायदा, हमें मंजूर नही।
— ओमप्रकाश बिन्जवे ” राजसागर “

*ओमप्रकाश बिन्जवे "राजसागर"

व्यवसाय - पश्चिम मध्य रेल में बनखेड़ी स्टेशन पर स्टेशन प्रबंधक के पद पर कार्यरत शिक्षा - एम.ए. ( अर्थशास्त्र ) वर्तमान पता - 134 श्रीराधापुरम होशंगाबाद रोड भोपाल (मध्य प्रदेश) उपलब्धि -पूर्व सम्पादक मासिक पथ मंजरी भोपाल पूर्व पत्रकार साप्ताहिक स्पूतनिक इन्दौर प्रकाशित पुस्तकें खिडकियाँ बन्द है (गज़ल सग्रह ) चलती का नाम गाड़ी (उपन्यास) बेशरमाई तेरा आसरा ( व्यंग्य संग्रह) ई मेल [email protected] मोबाईल नँ. 8839860350 हिंदी को आगे बढ़ाना आपका उद्देश्य है। हिंदी में आफिस कार्य करने के लिये आपको सम्मानीत किया जा चुका है। आप बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं. काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है ।