कविता

जागो रे किसान!

समय आ गया अब जागो रे किसान
परिवर्तन के गान से गूंज जाए हिंदुस्तान
हँस रहे है सारे पूंजीपतियों के धृष्ट औलाद
तन-मन से बन जाओ अब अटल फौलाद
आया बेईमान सरकार का तुगलकी फ़रमान
तुमको नमन हमारा! डूबने मत दो अभिमान
तुम्हारे जीवन-वृतांत में नही है करना विश्राम
अपना हक पाकर ही करना अब तुम आराम
राजनीति का मोहरा बना बहुत उड़ाए मखौल
भारत माँ के आँखों का तारा छोड़ो अपना ठौर
असहनीय हो गया अब ये हृदय विदारक मंजर
फावड़ा-कुदाल फेंक मजबूत कर लो अब पंजर
समय आ गया अब जागो रे किसान
परिवर्तन के गान से गूंज जाए हिंदुस्तान।।

©आशुतोष यादव

बलिया,उत्तर प्रदेश

आशुतोष यादव

बलिया, उत्तर प्रदेश डिप्लोमा (मैकेनिकल इंजीनिरिंग) दिमाग का तराजू भी फेल मार जाता है, जब तनख्वाह से ज्यादा खर्च होने लगता है।