कविता

प्यार का अभिप्राय

मैं प्यार तुझसे नहीं
हरे-भरे खेतो जैसा तेरे
खिले चेहरे से करता हूँ
जिसके दर्शन से मेरी
आँखे तरो-ताजा रहती है।

मैं प्यार तेरे प्रौढ़ता से नही
तेरे अंदर जीवंत अलमस्त
बचपना से करता हूँ
बेपरवाह सी हर पल तेरे
चेहरे की मुस्कान मेरा
नासूर जख्म भी सूखा देती है।

मैं प्यार तेरे गुलाबी होंठो को
चूमने के लिए नही,तेरे माथे
को चूमने के लिए करता हूँ
जो आत्मा के अतिसंताप को
पल में विस्मृत कर देता है।

©आशुतोष यादव

बलिया,उत्तर प्रदेश

आशुतोष यादव

बलिया, उत्तर प्रदेश डिप्लोमा (मैकेनिकल इंजीनिरिंग) दिमाग का तराजू भी फेल मार जाता है, जब तनख्वाह से ज्यादा खर्च होने लगता है।