देश के ग़द्दारो
देश के ग़द्दारो अब तुमसे बग़ावत ज़रूरी है,
वतन की ख़ातिर मिट जाने को चाहत ज़रूरी है ।
गुनाह किया है तूने जो तिरंगे के पास जाके अब,
तुझे सबक़ सिखाने को अब थोड़ी हिमाक़त ज़रूरी है ।
क्यों तू चल रहा भेड़ों में छिप ये भेड़िए सी चाल,
तेरे होश उड़ाने को अब थोड़ी तो हिम्मत ज़रूरी है ।
जहाँ अनेकता में एकता की मिसाल है ये भारत ,
उस वतन के लिए तेरी रूह में मुहब्बत ज़रूरी है ।
मेरा मौन देख ये न सोच कि बिसर गया मैं सब,
शीत युद्ध सा ख़ामोश हूँ शराफ़त ज़रूरी है ।।
ग़र चाहूँ तो ध्वस्त कर दूँ क्षण भर में तेरे सारे इरादे,
जड़ से मिटाने को तुझे सबकी एक ही शिद्दत ज़रूरी है ।
घड़ी-घड़ी तेरे क्रोध का जो आवेश उबलता-उफनता,
‘मिलन’ कहे कुछ पाने को सच्ची इबादत ज़रूरी है ।।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’