ग़ज़ल
आँखों में आफताब उगाने की बात है
कोहरे का खौफ दिल से मिटाने की बात है
अमावस का रंज करने से कुछ फायदा नहीं
दीपावली का पर्व मनाने की बात है
ऐसी है चकाचैंध फिसलना है लाजमी
गिरते हुओं को सिर्फ उठाने की बात है
मुँह ढकके पड़े रहने से तम जाएगा नहीं
बस उठके इक दिये को जलाने की बात है
बच्चों के रूठने पे न गम्भीर होइए
बच्चों सा बनके उनको हँसाने की बात है
सोते हुओं को सूर्य किरण खुद जगायेगी
जागे हुओं को सिर्फ जगाने की बात है
मौसम की तरह ‘शान्त’ वो रूठा है इन दिनों
चुपके से उसको सिर्फ मनाने की बात है
— देवकी नन्दन ‘शान्त’