कविता

मेरा गाँव

 

 

कितने दशक गुज़र गए है,
मुझे तो गिनती नही उनकी,
लेकिन कोई गिन रहा है,
उसके बिछड़ने की गिनती।

बरसों बाद कदम आ गए,
उस खण्डर रूपी हवेली में,
जहां गूंजती थी कभी,
किलकारी बच्चों की ।।

उसमें कदम जब मेरे पड़े,
हाथ अनायास ही उठे,
उसकी हर दीवार को टटोलने,
होंठ तो सिल गए है ।।

हर एक ईंट पत्थर मानो,
कर रहे मुझसे ही मेरी शिकायत,
पूछ रहे है कहाँ चले गए,
हमसे रूठ कर तुम ।।

मेरी कलाकारी के निशां,
हर जगह है मौजूद यहां,
जर जगह की है मेरी कहानी
रह रह कर आ रही है याद ।।

मन दहाड़ दहाड़ रो रहा,
आँखे झर रही है अविरल,
मेरा बचपन जिसने सम्भाल रखा,
वो हो रहा है झर्झर आज ,।।

मेरी नींव को मजबूत बनाया ,
उसकी नीवं को न सम्भाल सका,
जिसमें पहले बसते प्राण मेरे,
आज उसकी धराशायी देख रहा।।

हम चकाचौंध में क्यों भूल जाते,
इस जन्मभूमि को हमारी,
जिसका कण कण ही है ,
रगों में खून बन कर के ।।

पलायन होता है तन का तो,
गांव को बिसरा क्यों देते है ,
जिसने दिया मुकाम बड़ा,
उसको क्यो खण्डहर बनाते ।।

झर्झर होती हमारी हवेली ,
आज भी मान अभिमान है,
पहचान है हमारी यह आज भी,
इसको जगमग रखे हम आज ।।

आज भी गांव से है हम ,
पहले भी गांव से थे हम ,

डॉ सारिका औदिच्य

*डॉ. सारिका रावल औदिच्य

पिता का नाम ---- विनोद कुमार रावल जन्म स्थान --- उदयपुर राजस्थान शिक्षा----- 1 M. A. समाजशास्त्र 2 मास्टर डिप्लोमा कोर्स आर्किटेक्चर और इंटेरीर डिजाइन। 3 डिप्लोमा वास्तु शास्त्र 4 वाचस्पति वास्तु शास्त्र में चल रही है। 5 लेखन मेरा शोकियाँ है कभी लिखती हूँ कभी नहीं । बहुत सी पत्रिका, पेपर , किताब में कहानी कविता को जगह मिल गई है ।