मेहंदी की बागड़ से
आती महक
लगता कोई
रचा रहा हो मेहंदी|
पीली सरसों की बग़िया
लगता जैसे शादी के लिए
बगिया के हाथ कर दिए हो पीले|
भवरें -कोयल गा रहे स्वागत गीत
दिखता प्रकृति भी रचाती विवाह
उगते फूल आमों पर आती बहारें
आमों की घनी छाँव तले
जीव बना लेते
शादी का पांडाल
ये ही तो है असल में
प्रकृति के बाराती|
— संजय वर्मा “दृष्टि “