लघुकथा

ट्यूशन फीस

सरला ने मम्मी से कहा कि मुझे गणित के कुछ प्रश्न समझा दीजिए। मम्मी नाराज़ हो गई। देखती नहीं ही चार बैच ट्यूशन के ले रही हूं। टाइम कहां है। और तुम्हें कौन सा इंजिनियर साइंटिस्ट बनना है। बी ए करवाकर शादी कर दूंगी। गाइड से नकल करके स्कूल का काम पूरा कर लो। सरला बोली पर भैया के लिए तो कोटा कोचिंग में लाखों रुपए खर्च कर रही हो। मैं लड़की हूं तो क्या मेरा कसूर है। आजकल तो मेरी कई सहेलियों की दीदियां इंजीनियरिंग कर रही हैं। मम्मी बोली ज़बान चलाती है। भाई की क्या बराबरी करेगी। चुप रह। नया बैच आने वाला है। एक विद्यार्थी उसकी मम्मी को पांच सौ रुपए ट्यूशन फीस के दे रहा था यह सरला ने देख लिया। अपने कमरे में जाकर अपनी गुल्लक खोली। सरला बहुत खुश हो गई कि उसे अपनी गुल्लक में पांच सौ रुपए मिल गए। मम्मी के पास गई लीजिए मैडम मम्मी इस महीने की एडवांस ट्यूशन फीस। बताइए कि मैं कौन से बैच में आपकी ट्यूशन के लिए आऊं। मम्मी स्तब्ध रह गई। विद्यार्थी भी हैरान थे कि मैडम की बेटी को भी ट्यूशन फीस देनी पड़ रही है। सरला की मम्मी तो शर्म से पानी पानी हो गईं । नज़रें ही नहीं मिला पाई अपनी स्वाभिमानी बेटी से। पूछा इतने रुपए कहां से लाई। सरला ने उत्तर दिया अपनी गुल्लक तोड़ कर। सरला की मम्मी निशब्द ही हो गई। दूसरे बच्चों को तो पैसे के लालच में पढ़ाती हूं। अपनी ही बेटी पर ध्यान नहीं दे पाई। भावुक हो गईं। आंखों में आंसू आ गए। भरे गले से बोली सॉरी बेटी मुझे माफ़ कर दे। रुपए वापिस गुल्लक में डाल दे। प्रतिदिन अलग से तुझे एक घंटा नियम से दूंगी। तुमने मेरी बंद आंखें खोल ए बेटी। वेरी वेरी सॉरी बेटी। अभी टी इसी बैच में शामिल हो जाओ। शाम को अलग से भी समय देकर गणित की सारी प्रॉब्लम सॉल्व का दिया करूंगी। सरला की मम्मी उस दिन पूरे समय बार बार अपने बहते आंसुओं को पोंछ कर किसी तरह क्लास पूरी कर पाई। शाम को अपनी बेटी से बोली कि तुझे भी इंजिनियर साइंटिस्ट जो भी बनना होगा अवश्य ही अवसर दूंगी। भैया एवम तुम दोनों ही मेरा ही अंश हो। दोनों को ही एक समान उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए अवसर दूंगी। विश्वास भरोसा रखो मेरी प्रिय सरला बेटी। दोनों मम्मी बेटी एक साथ मुस्करा पड़ीं। इति।

— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी