मेरी वेलेंटाइन
एक रिश्तेदार के विवाह में एक सादगी सरल सी मासूम सी लड़की मिली। नाम श्यामा। हम दोनों की ही ड्यूटी जहां बारात रुकी थी वहां लगी थी। हिम्मत करके परिचय पूछा। अपना भी बतलाया। सामान्य सी बातचीत होती रही। हम दोनों ही एक दूसरे से बात करने के अवसर मिलते ही उस समय का पूरा सदुपयोग करते। विवाह से लौटते समय एक दूसरे के एड्रेस लिए। 1972 में मोबाइल तो था नहीं। पत्र व्यवहार चलता रहा। बिना कहे ही एक दूजे के होने का मन में निर्णय ले ही चुके थे। उन दिनों वेलेंटाइन शब्द नहीं पता था। पर आज की परिभाषा के अनुसार मेरी वह वेलेंटाइन भी थी एवम पहला प्यार भी। पहला अफेयर। उसकी इच्छा पर कि मेरे पापा मम्मी से मिलने आओ। मैंने उसे सूचित किया कि मेरी बहन का विवाह का कर्ज अभी बाकी है। मेरे पिता पोस्टमास्टर हैं। मेरी बहन के विवाह में लिया हुआ कर्ज मुझे ही चुकाना है। मैं परमाणु बिजली घर में कार्य करता था। डिप्लोमा के बाद आगे की पढ़ाई भी कर रहा था। तीन वर्ष प्रतीक्षा करनी होगी विवाह के लिए। विवाह के बाद में भी मुझे माता पिता की आर्थिक सहायता करनी होगी। प्रेमिका श्यामा का उत्तर था कि दिलीप प्यार शर्तों नियमों पर नहीं होता। अपने प्यार को उम्र भर पाने के लिए में तीन वर्ष प्रतीक्षा कर लूंगी। मध्यम वर्ग का परिवार है हमारा। विवाह भी साधारण ही हो पाएगा। उसका उत्तर था असाधारण जीवन साथी को पाने के लिए साधारण विवाह भी मंज़ूर है। सच्चा प्रेम दिखावे फ़िज़ूल खर्च को नहीं मानता। मुझे बस इतना चाहिए कि मेरा दिलीप अपने दिल में मुझे हमेशा बसा कर रखे। किसी काम से श्यामा का आगरा आना हुआ। मौसाजी से मिलने के बहाने मैं भी आगरा पहुंच गया। ताजमहल देखने गए। ताजमहल तो नहीं देख पाए बस एक दूसरे को ही देखते रहे। प्यार भरी खूब बातें कीं। मौसाजी से उसका परिचय कराया एवम अपनी इच्छा भी उन्हें व्यक्त कर दी। मौसाजी ने भरोसा दिलाया कि तुम्हारे बाबूजी अम्मा से में बात करूंगा। मौसाजी ने अपना वचन निभाया। बहन की शादी का कर्ज भी पूरा हो चुका था। मेरी डिग्री भी पूरी होकर मुझे राजपत्रित अधिकारी की पदोन्नति मिल गई थी। मेरी वेलेंटाइन मेरा पहला प्यार प्यारे से पति पत्नी के रिश्ते में आजीवन के लिए ही हो गया। प्रेमी प्रेमिका अब परिवार समाज की निगाह में पति पत्नी थे लेकिन इक दूजे के लिए हम सदैव प्रेमी प्रेमिका ही रहे। असाध्य रोग के कारण मेरी प्रेमिका मुझे मंझधार में छोड़ कर ईश्वर के यहां चली गईं। लेकिन उसको दिए गए वचन को निभाते हुए दिलीप के दिल में तो वह अब भी है। अपनी वेलेंटाइन की स्मृति में अपने आंसुओं से उसे श्रद्धांजलि देता रहता हूं। श्यामा दिलीप जीवन के हर सुख दुख में इक दूजे को निभाते रहे। निर्मल निस्वार्थ प्रेम प्यार की पर्यायवाची रही मेरी प्रथम एवम अंतिम वेलेंटाइन।
— दिलीप भाटिया