गीत/नवगीत

बसंत का महीना

बहुत सताये मुझे बसंत का महीना,
महबूबा बिना मुश्किल हुआ मेरा जीना।२
अकेले काटे कटे नहीं बसंत का महीना,
अजी कहीं से ढूंढ लाये कोई एक हसीना।२
पीले-पीले सरसों ऐसे लहराए खेतों में,
जैसे लहराए दुपट्टा कोई अल्हड़ हसीना।२
बहुत सताये मुझे बसंत का महीना,
महबूबा बिना मुश्किल हुआ मेरा जीना।२
प्रकृति के श्रृंगार करता हराम मेरा जीना,
जैसे सताये कोई मदहोश चंचल हसीना।२
बगिया में विरही कोयलिया कुके ऐसे,
मानो कहीं कोई बजा रहा मोहन वीणा।२
बहुत सताये मुझे बसंत का महीना,
महबूबा बिना मुश्किल हुआ मेरा जीना।२
गर्मी की शुरु,खत्म हुआ ठंड के महीना,
बसंती बयार चले ऐसे जैसे चले हसीना।२
ठंडी-ठंडी हवा सुखा रही तन की पसीना,
प्रेयसी के विरह में मुश्किल हुआ जीना।२
बहुत सताये मुझे बसंत का महीना,
महबूबा बिना मुश्किल हुआ मेरा जीना।२
चहुं ओर गुंज रही गीत,होली,फगुआ,
होली के धुन पर पांव थिरकाती हसीना।२
मोर जिया ललचा रही गोरी के बिना,
अजी कहीं से ढूंढ लाये कोई एक हसीना।२
बहुत सताये मुझे बसंत का महीना,
महबूबा बिना मुश्किल हुआ मेरा जीना।२
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

शिक्षक और सामाजिक चिंतक देवदत्तपुर पोस्ट एकौनी दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार पिन 824113 मो 9507341433