कविता

बसंत गीत

प्रेम भाव से भरे, रंग रूप से सजे !
प्रियतम के प्यार भरे पाती जो आ गए!

झूम रहीं डालियाँ,कुक रहीं कोयलिया !
अमवा के डाल देखो, मंज़र सज़ा गये  !

खिल रहे पलाश डाल, गोरी के गाल लाल !
ताक़ रही राह पी की, साजन भी आ गए !

नैनों में भर कजरा बालों में शोभे गज़रा ।
रातरानी खुशबु सी मदहोशी छा गए !!

जाग गईं कामनाएँ, मन में सपनें जगाये !
अंग अंग मदन मस्त, सपनें सज़ा गए !!

चहक रहीं कली कली, भौरें गुंजार करें !
झूम रही डाल डाल, जिया हरसा गए !!

मस्त मस्त चले पवन, टूट रहा अंग अंग !
रंग अपना जमाने देखो ऋतू राज आ गए !!

— मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- [email protected]