बसंत गीत
प्रेम भाव से भरे, रंग रूप से सजे !
प्रियतम के प्यार भरे पाती जो आ गए!
झूम रहीं डालियाँ,कुक रहीं कोयलिया !
अमवा के डाल देखो, मंज़र सज़ा गये !
खिल रहे पलाश डाल, गोरी के गाल लाल !
ताक़ रही राह पी की, साजन भी आ गए !
नैनों में भर कजरा बालों में शोभे गज़रा ।
रातरानी खुशबु सी मदहोशी छा गए !!
जाग गईं कामनाएँ, मन में सपनें जगाये !
अंग अंग मदन मस्त, सपनें सज़ा गए !!
चहक रहीं कली कली, भौरें गुंजार करें !
झूम रही डाल डाल, जिया हरसा गए !!
मस्त मस्त चले पवन, टूट रहा अंग अंग !
रंग अपना जमाने देखो ऋतू राज आ गए !!
— मणि बेन द्विवेदी