फिर से ढोल बजायें आओ
फिर से ढोल बजायें आओ मिलके भाईचारे का
आओ बन जायें हम चारा फिर से इन हत्यारे का
आओ मंदिर में हम गायें अल्लाह ईश्वर एक है
जाली वाली टोपी वाला बन्दा होता नेक है
आओ अपना रक्तदान कर उनके प्राण बचायेंगे
और हमारे अवतारों का खुद ही मखौल उड़ायेंगे
अपना मन बहलायेंगे हम इन कोरी बकवासों से
सीख नहीं कुछ लेंगे हम तो अपने ही इतिहासों से
देश बाँटकर भी ना समझे मूर्ख हमारे जैसा कौन
घर लुटवाकर भी तो वर्षों से हम रहते आये मौन
आओ गंगा जमुनी तहजीबों का फिर से गीत सुनें
भगवा वस्त्रों को कोसें और हरे रंग को मीत चुनें
मैंने जब भी कहना चाहा सब लोगों ने टोक दिया
फिर से पीठ हुई है जख्मी उसने खंजर भौंक दिया
सदा खेलता आया है वह मेरे सब विश्वासों से
सीख नहीं कुछ लेंगे हम तो अपने ही इतिहासों से
— मनोज डागा