गीत
उर में अवसाद है ।
चाँदी सी शुभ्र रात
हवा भी मचल रही है।
नदिया के तन पे,धवल-
चाँदनी फिसल रही है।
पूर्ण प्रकृति, रिक्त हृदय ,
कैसा अपवाद है। ?
उर में अवसाद………
नैनों में बाढ़ हुई ,
उर मे पतझार हुआ।
टूट चुके सपनों को ,
पीड़ा से प्यार हुआ ।
मौन हुए ,गीतों का ,
निष्फल संवाद है ।
उर में अवसाद …।
कोयल की कुंजन से,
भौरों के गुंजन से ।
एक नव बसंत हुआ,
महक चली उपवन से।
जल भुन बैठा जवास ,
चहुँ दिशि उन्माद है ।
उर में अवसाद…….
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी