नारी कभी ना हारी
सह लेती हैं वो दुख सारे
पर सारे दुख उससे हारे।
ज़ुल्म करता रहा उस पर ज़माना
कोई सुनता नहीं किसको पुकारें।
सदियों से रही है नारी
पुरुषों के हाथ का खिलौना।
भर जाता दिल तो कर देते किनारे।
चुप चाप दुखों को सहना ही
नियति बना लिया था नारी ने,
अक्सर अपनी जान की आहुति देती रही
उफ्फ किए बिना हर दुख सहती रही।
सीख मिलता रहा मां पिता का
कि होठ सी लेना …
पर जवाब मत देना ससुराल में।
क्यूंकि ये तुम्हारा संस्कार है।
तिरस्कार सह लेना पर
उलाहना मत लाना मायके में।
बदनामी होगी दोनों कुल की।
सलीके से बैठा दिया जाता
दिल और दिमाग में इस बात को।
बचपन में ही घुट्टी पिला दिया जाता था संस्कारों की।
सबकी सेवा करना तुम्हारा धर्म है।
हंसते हंसते दुख सह लेना
तभी तो कभी प्रसव वेदना सहते सहते
मातृत्व की भेंट चढ़ जाती वो मासूम नादान
तो कभी दहेज की बलि वेदी पर दफना दी जाती।
कभी चौराहे पर मिल जाते दुशासन
और कर देते निर्वस्त्र….
अभिशापित अस्तित्व लिए ढोने को मजबूर।
इस पुरुष प्रधान जगत में जाए तो जाए कहां???
कसूर किसी भेड़िए की और कटघरे में पूछ ताछ होती
उस घायल हिरनी से।
टटोला जाता उसका अंग प्रत्य अंग
छी ….
ये कैसा न्याय है ??
कितनी बार मरेगी वो।
कितनी बार असहाय पीड़ा को झेलेगी।??
नहीं नहीं नहीं…..
अब नहीं…
अब नारी अबला लाचार नहीं
अब नारी बेबस किरदार नहीं।
जो हासिल हो जाए सबको।
आज की नारी सबका अधिकार नहीं।
वो सजग हुई है, हारी नहीं है।
प्रेम में जीती है बावरी नहीं है।
विश्व स्वरूपा जननी है नारी है
ये हमारी बेटी बहन अर्धाग्नगी है।
ये सृष्टि की रचयिता सृजन कारी है।
पुरुषों को भी #जनती है बलवान है।
पड़ती पुरुषों पर भारी है।
सद् विचार के पथ पर चलती
नारी श्रेष्ठ संस्कारी है।
नारी कभी ना हारी है।
नारी कभी ना हारी है।
— मणि बेन द्विवेदी