लघुकथा

एक बूँद ओस की

“वापस जाना जरूरी है क्या? हनीमून पर भी नहीं जा सके थे। महीनों बाद एक सप्ताह की छुट्टी मिली थी, पर चार दिनों में ही लौट रहे हैं।”

टैक्सी एक हिल स्टेशन के सर्पिल सड़कों पर तेजी से भागी जा रही थी। एक नवविवाहित जोड़े में बहस जारी थी, “सारा वक़्त यूँ ही गँवा देना। जिंदगी ओस की बूँदों के समान है, जाने कब खत्म!”

“हे देवी! जिंदगी कविता, कहानियों और समाज सेवा से नहीं चलती। रोटी, कपड़ा और मकान लगता है, जिसके लिए इस तुच्छ सेवक को करनी पड़ती है नौकरी और माननी पड़ती है बाॅस की बातें। बॉस ने कहा, ‘लौट आओ!’ तो लौटना है। सवाल जवाब की गुंजाईश कहाँ है? लॉकडाउन के बाद नौकरी बची है, यही शुक्र मनाओ।

और जिंदगी ओस की एक बूँद क्यों? मैंने आपके साथ लंबे जीवन की योजना बनाई है, जिसके लिए लक्ष्मी जी की कृपा आवश्यक है। आपकी कविता, कहानियों एवं समाज-सेवा का मानदेय तो मिलता नहीं, नौकरी करके घर मुझे ही चलाना पड़ेगा, मैडम!” पर माहौल का तनाव कम होता नहीं दिखा।

निष्ठा के बिगड़े मिज़ाज के साथ गाड़ी का मिज़ाज भी बिगड़ गया। टैक्सी ड्राइवर ने कहा, “मैडम! लगता है पानी डालना पड़ेगा।”

“हाँ तो डालो! मना किसने किया है?” निष्ठा झुंँझलाई।

“सर! मैडम! डिकी में बच्चा! ज़रूर मैंने डिकी खुली छोड़ी होगी”, डिकी खोलते ही ड्राइवर चिल्लाया। अपूर्व और निष्ठा नीचे उतरे।

“यह तो वही बच्ची है, जो हमें रास्ते में  ढाबे पर मिली भी थी! मैंने ढाबे वाले को डाँटा भी था कि एक नाबालिग बच्ची से इतने सारे बर्तन क्यों धुलवा रहा है? बाल श्रम कानून से अनभिज्ञ है क्या? तुम्हारी प्रतिक्रिया थी, ‘एक टूरिस्ट की तरह घूमो, समाज सेविका का चोला पहन कर नहीं।’ मैंने तुम्हारी बात मानी पर तुमने छुट्टी का सत्यानाश कर दिया”, निष्ठा का गुस्सा पुनः सातवें आसमान पर चढ़ गया।

“झगड़ा बंद कीजिए, मैडम! बच्ची की बात सुनिये”, ड्राइवर ने हाथ जोड़ दिये।

“जब मैं छोटी थी तभी मेरी माँ को बॉर्डर पार से भगाकर उस ढाबे पर बेच दिया गया था। वह वहाँ सालों सफाई-बर्तन का काम करती रहीं। कभी-कभार चाची के न रहने पर ढाबे का मालिक जोर-ज़बरदस्ती भी करता था। थकान और कुढ़न से माँ को टीबी ने जकड़ लिया और पिछले साल दम तोड़ गईं।

तब से चाचा मुझसे सफाई-बर्तन कराता है और ज़बरदस्ती करने की ताक में था, चाची ने बचा रखा था। आज मुझे आपके साथ भगा दिया। कहा- मैडम समाजसेविका हैं, कोई ना कोई प्रबंध ज़रूर कर देंगी।”

“लीजिए निष्ठा मैडम! सफर के बीच में ही मिल गई ओस की एक असली बूँद। अब इसके लिए सही सीपी का प्रबंध करना आपका फर्ज है। इसपर एक धाँसू स्टोरी भी लिखिए और बजाइए उस ढाबे वाले की बैंड”, अपूर्व मुस्कुराकर बच्ची के साथ गाड़ी में जा बैठे।

निष्ठा का गुस्सा झाग की तरह बैठ गया था। अब उसके सामने एक तगड़ी चुनौती खड़ी थी।

— नीना सिन्हा

नीना सिन्हा

जन्मतिथि : 29 अप्रैल जन्मस्थान : पटना, बिहार शिक्षा- पटना साइंस कॉलेज, पटना विश्वविद्यालय से जंतु विज्ञान में स्नातकोत्तर। साहित्य संबंधित-पिछले दो वर्षों से देश के समाचार पत्रों एवं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में लघुकथायें अनवरत प्रकाशित, जैसे वीणा, कथाबिंब, सोच-विचार पत्रिका, विश्व गाथा पत्रिका- गुजरात, पुरवाई-यूके , प्रणाम पर्यटन, साहित्यांजलि प्रभा- प्रयागराज, डिप्रेस्ड एक्सप्रेस-मथुरा, सुरभि सलोनी- मुंबई, अरण्य वाणी-पलामू,झारखंड, ,आलोक पर्व, सच की दस्तक, प्रखर गूँज साहित्य नामा, संगिनी- गुजरात, समयानुकूल-उत्तर प्रदेश, शबरी - तमिलनाडु, भाग्य दर्पण- लखीमपुर खीरी, मुस्कान पत्रिका- मुंबई, पंखुरी- उत्तराखंड, नव साहित्य त्रिवेणी- कोलकाता, हिंदी अब्राड, हम हिंदुस्तानी-यूएसए, मधुरिमा, रूपायन, साहित्यिक पुनर्नवा भोपाल, पंजाब केसरी, राजस्थान पत्रिका, डेली हिंदी मिलाप-हैदराबाद, हरिभूमि-रोहतक, दैनिक भास्कर-सतना, दैनिक जनवाणी- मेरठ, साहित्य सांदीपनि- उज्जैन ,इत्यादि। वर्तमान पता: श्री अशोक कुमार, ई-3/101, अक्षरा स्विस कोर्ट 105-106, नबलिया पारा रोड बारिशा, कोलकाता - 700008 पश्चिम बंगाल ई-मेल : [email protected] व्हाट्सएप नंबर : 6290273367