गॉंव
शहरों सा झुलस रहा है अब गॉंव
पीपल रहा न चौक में, मिट गई ठंडी छांव
जल-जंगल सभी हो गये यहॉं लापता
कंक्रीट के जंगलों ने पसारा चहुंओर पांव
शहरों सा झुलस रहा है अब गॉंव
ताल-तलैया, नदी-पोखर, कुए सब सूखे
मानव बनकर दानव खेल रहा स्वार्थ के दॉंव
शहरों सा झुलस रहा है अब गॉंव
कोख हुई धरती की बंजर देखो आज
हर जीव भटक रहा, मिले न किसी को ठांव
शहरों सा झुलस रहा है अब गांव
पेड़-पौधों को काट रौंद दी सारी प्रकृति
डूब जाएगी आने वाली नव पीढ़ी की नाव
शहरों सा झुलस रहा है अब गांव
साथी ! अगर धरती बचानी है अपनी तो,
प्रकृति प्रेम की और बढ़ाओ अब पांव
शहरों सा झुलस रहा है अब गांव
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा