घनाक्षरी
मर्यादा अपनी नही, छूटने दिये कभी जो, अटल व सत्यनिष्ठ सिर्फ एक राम हैं।
बीज अत्याचार को मिटा दिया समूलता से , दीनन की लाज रखे, लोक अभिराम हैं।
सुन्दर स्वरुप दिव्य, मन में बसी है छवि , जनता के प्राणनाथ, नयनाभिराम हैं।
जिनका कृपा के बिना , हिलता न एक पात , ऐसे हनुमान प्रिय ,प्रभु सीताराम हैं।।
— शिवेन्द्र मिश्र ‘शिव’