कविता

खुशियों की उम्र नहीं 

जबसे साठ वसंत पार हुए,
अपने होने लगे हैं किनारे,
आ जा प्यारे मिलकर हम
उनके ज़मीर को ललकारें।
आ जा प्यारे,साथ हमारे
मिलजुल कर जी लें हम दोनों
अपनी शेष जिन्दगी को
एक – दूजे के संग सहारे।
जब आई तू मेरी जिंदगी में
मिलीं खुशियां मुझे बहुत सारे।
बस तू ही हो मेरी उम्मीद एक,
मेरी नईया अब तेरे सहारे।
आ जा प्यारे,साथ हमारे
भूलकर सारी गलतियों को,
हम अपनी वीरान जिंदगी को
एक बार फिर से संवारे।
नहीं कुछ लेकर आए हैं हम
नहीं कुछ लेकर जाएंगे,
जैसा हमने कर्म किया है
वैसा ही फल हम पाएंगे।
यहां न कोई तेरा,न कोई मेरा
जब जागो तब ही सवेरा।
आ जा प्यारे,साथ हमारे
बची-खुची जिंदगी साथ गुजारें।
— गोपेंद्र कु सिन्हा गौतम

गोपेंद्र कुमार सिन्हा गौतम

शिक्षक और सामाजिक चिंतक देवदत्तपुर पोस्ट एकौनी दाऊदनगर औरंगाबाद बिहार पिन 824113 मो 9507341433