ग़ज़ल
बंधन पुराने तोड़ ,रीति नव चलाइये!
बेटियाँ बचाइये जी, बेटियाँ पढ़ाइये !
दो घर महकायेंगी, ये धरती की परियाँ,
कोख में न मारिये, न जिंदा जलाइये !
चूल्हे चौके में इनका बचपन न छीनिये,
गीता,मिताली,हिमा,साइना, बनाइये !*
पढ़ने दो,लिखने दो,आगे बढ़ जाने दो,
बालपन में बेटियों का ब्याह न रचाइये ।
कल्पना बनेंगी अंतरिक्ष तक ये जायेंगी,
बेटियों का सिर्फ आप हौंसला बढ़ाइये!
अनगिन सीताओं का जीवन छीना जिसने
उस दहेज रावण को मार के भगाइये !
आपके बुढ़ापे में माँ बनकर पालेंगी ,
आज इन्हें स्नेह भरी उँगली थमाइये !
— डॉ दिवाकर दत्त त्रिपाठी