प्रताड़ना का स्वरूप
राम बाबू रिटायर हुए।जब सेवा में थे तब वे बाज़ार जाते समान खरीद कर दुकान से लाते तो दुकानदार बड़े प्रेम से उनसे बात करता। कहता रामबाबूजी रुपए अभी आपके पास ना हो तो कोई बात नही।आप तो हमारे रेग्युलर कस्टमर हो।खाते में लिख लेता हूँ।जब आपके पास हो तब देना। दुकानदार की सोच थी कि यदि रामबाबूजी पूरा हिसाब कर देंगे तो वो दूसरी दुकान से सामान लेने लग जाएंगे।रामबाबूजी को हर माह वेतन तो मिलता ही है।पैसे समय पर मिल ही जाते है। रामबाबूजी की आदत थी कि वो किसी भी दुकान पर उधारी नही करते।बल्कि जहां तक हो सकें।नगद ही लेना पसंद करते है।
जब रामबाबूजी रिटायर हुए।दुकानदार ने भी अपना रुख बदल लिया।दुकानदार को मालूम था कि रामबाबूजी के ऊपर कई जवाबदारी रही है।उसको पेंशन में पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
दुकानदार अब उनको नमस्कार नहीं करता और बोलचाल में भी परिवर्तन दिखाई देने लगा।
रामबाबूजी के यहाँ मेहमान आए।उन्हें पेंशन बैंक की छुट्टी होने से पैसों को निकालने में परेशानी आने पर उन्होंने सोचा अपनी जान पहचान की दुकान से उधार सामान ले आए।किंतु दुकान पर पहुँचे ।बोले – भाई सामान चाहिए, मगर पैसे दो चार दिनों बाद दे सकूँगा।दुकानदार ने अनमने से मन से कहा – रामबाबूजी एक बात कहूँ हम शाम के समय उधारी नही करते।थोड़ा सामान चाहिए तो ले जाओ।रामबाबूजी को लगा यदि मैं रिटायर नही होता तो इसकी दुकान पर आता ही नही।इसी ने पहले पहल की थी कि पूरे पैसे अभी मत दो।खाते में लिख लूंगा।आज जब में रिटायर हुआ तो इसे मेरी फिक्र लग गई कि ये अब हमेशा उधारी में ही सामान ले जाया करेगा।समय के बदलाव ने दुकानदार की सोच में लोभ का परिवर्तन कर डाला।
रामबाबूजी के आगे मेहमानों की मजबुरी थी।की रामबाबूजी ने हमें कुछ भी नही खिलाया। रामबाबूजी प्रताड़ना का सामना कर रहे थे।वो ये भी सोच रहे थे कि अभी तक स्त्री प्रताड़ना का ही सुना था।मगर पुरुष प्रताड़ना आज महसूस की।
रामबाबूजी ने सेठजी को कहा- कोई बात नही। आपकी दुकान है।आप की इच्छा आप उधार दे या ना दे।और खाली थैली लेकर वापस घर आ गए।मेहमानों को झूटी बात ये कही की दुकानदार के यहाँ मौत हो गई इसलिए दुकान बंद है। मौत विश्वास की हुई थी जो रामबाबूजी ने दुकानदार पर किया था।किंतु प्रताड़ना की आत्मा अमर थी।जो उसे प्रतिदिन उसे याद दिलाया जाया करती थी। जब रामबाबूजी दुकान की तरफ देखते।
— संजय वर्मा “दृष्टि”