कविता

मां

मां को जाना सबने ममता मई और संवेदनशील
हां! ये सच हैं,मां सा नही कोई संवेदनशील
पर एक सच ये भी है जो जानो सब
मां सा नही कोई मार्गदर्शक और कठोर शिक्षक
आज यदि मुझमें है वो दम
दुख के तूफानों और असफलता के थपेड़े से लड़ने का खम
वो मेरी मां का ही दिया अध्याय था
जिसने बनाया मुझे इतना सहन शील
वो कभी बनकर कलम मेरी तकदीर लिखती
कभी कागज बन मेरा भविष्य उकेरती
तो बन जाती कभी अनगिनत ख्यालों का शब्द ग्रंथ
कभी मेरी अधखुली आंखों से देखे सपनो का सागर
तो कभी मेरे हौसले के उड़ान
देखे मुझे हताश तो आंखे होती उसकी नम
वो मेरी मां ही है जिसने खुद में समेटा मेरा जहां
उसकी फटकार भी मीठी बोली सी लगती।
*हां!वो मेरी मां ही है जिसने बनाया मुझे इंसान
— निर्मला जैन

निर्मला जैन "निम्मी"

अहमदाबाद निवासी गृहणी हू , उम्र मेरी ५२ है ।