संघ पर टिप्पणी करने से बाज आएं राहुल गांधी
कोंग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने विगत दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुसांगिक संगठन विद्या भारती द्वारा पूरे देश भर में चलाए जा रहे विद्यालयों की तुलना इस्लामित कट्टरपंथी मदरसों से किया है जो बिल्कुल अनुचित है। राहुल गांधी को पहले संघ का इतिहास पढ़ लेना चाहिए। उसके बाद कुछ बोलना चाहिए। राहुल को पता होना चाहिए कि उनके ही नेता जवाहरलाल नेहरू ने भी संघ की प्रसंसा की है । साथ ही समय- समय पर संघ की प्रसंसा महात्मा गांधी, भीमराव राम जी अम्बेडकर, लालबहादुर शास्त्री, सुभाषचंद्र बोस, जयप्रकाश नारायण, सरदार पटेल जैसे बड़े लोगों ने भी संघ की प्रसंसा किया है। मैं राहुल गांधी को कुछ संघ का इतिहास समझाने का प्रयास कर रहा हूँ, राहुल गांधी द्वारा लगाए गए आरोपों पर सिलसिलेवार बात होनी चाहिए। संघ की स्थापना 1925 में हुयी। उस समय बाल गंगाधर तिलक के निधन को पांच साल हो चुके थे और कांग्रेस का नेतृत्व पूरी तरह गांधीजी और उनके साथियों के हाथों में था। उस समय जलियांवाला बाग में हजारों लोगों को शहीद हुए 6 साल हो चुके थे और कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व में अहिंसा का राग अलाप रही थी। कांग्रेस की पिलपिली नीतियों के कारण बंगाल और पंजाब में क्रांतिकारियों का आक्रोश अपने चरम पर पहुंच रहा था और वे भारत को स्वतंत्र कराने के लिए मरने-मारने पर आमादा थे। उन दिनों मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग को लेकर सड़कों पर हिन्दुओं का खून बहाने की तैयारियां जोर-शोर से कर रही थी। लीग की अपनी एक निजी सेना थी जिसमें लड़ने, चाकू मारकर हत्या करने और धावा बोलने का प्रशिक्षण दिया जाता था। हथियार एकत्र किये जा रहे थे और भारतीय सेना के विघटित मुस्लिम सैनिकों को लीग की सेना में भर्ती किया जा रहा था। उसके दो संगठन बनाये गये, एक था मुस्लिम लीग वालंटियर कॉर्प तथा दूसरा था मुस्लिम नेशनल गार्ड। नेशनल गार्ड मुस्लिम लीग का गुप्त संगठन था। उसकी सदस्यता गुप्त थी और उसके अपने प्रशिक्षण केंद्र एवं मुख्यालय थे जहाँ उसके सदस्यों को सैन्य प्रशिक्षण और दंगों के समय लाठी, भाले और चाकू के इस्तेमाल के निर्देश दिये जाते थे। मुस्लिम नेशनल गार्ड के यूनिट कमाण्डरों को ‘‘सालार’’ कहा जाता था। ऐसी विचित्र परिस्थितियों में हिन्दु समाज की रक्षा के लिए संघ का जन्म हुआ। खाकी नेकर पहनने वाले ये लोग हाथ में लाठी लेकर व्यायाम आदि करने के लिए एकत्रित होते थे और हिन्दू धर्म रूपी रत्न की मंजूषा की सुरक्षा के लिए अलख जगाने को तत्पर थे। संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगवार का उद्देश्य संघ के रूप में राजनीतिक संगठन खड़ा करना नहीं था, क्योंकि ऐसा करने से संघ के रूप में कांग्रेस के समानांतर हिन्दुओं का अलग राजनीतिक संगठन खड़ा हो जाता और इससे देश के स्वतंत्रता आंदोलन में फूट जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती। 1925 से 1940 तक डॉ. हेडगवार और 1940 से 1973 तक माधव सदाशिव गोलवलकर संघ के माध्यम से हिन्दू समाज के सांस्कृतिक उत्थान के लिए कार्य करते रहे। यह कार्य आज भी जारी है। यही कारण था कि हेडगवार सहित संघ के हजारों स्वयं सेवक व्यक्तिगत रूप से देश की आजादी के आंदोलन में शामिल हुए। 1947 में जब भारत का विभाजन हुआ तो संघ के स्वयं सेवक हिन्दू जनता को मुस्लिम आक्रमणों से बचाने के लिए देश की सीमाओं पर जाकर खड़े हो गए। इस कारण हजारों निरीह हिन्दुओं के प्राण बचाए जा सके। काश्मीर रियासत का भारत में विलय करवाने में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही। सरदार पटेल के कहने पर गुरु गोलवलकर ने हरिसिंह को भारत में सम्मिलन के लिए तैयार किया। आगे चलकर जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने देश पर आई विपत्तियों में संघ की सेवाएं लीं।
1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ ने देश की सेना के साथ-कंधे से कंधा मिलाया। सैनिक मार्गों के रक्षण का कार्य संघ को सौंपा गया। सेना को रसद उपलब्ध कराने तथा शहीदों के परिवारों को संभालने में संघ की प्रमुख भूमिका रही। इस योगदान के परिणाम स्वरूप जवाहरलाल नेहरू ने संघ को 1963 की दिल्ली की गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। 1962 के चीन युद्ध में हालात ऐसे थे कि कम्यूनिस्ट पार्टियां भारत की हार और चीन की जीत का स्वप्न देख रही थीं और चीनी सेनाओं के लिए विजय मालाएं हाथ में लिए बैठी थीं। नेहरू के निमंत्रण पर संघ के 3500 मजबूत स्वयं सेवकों ने परेड में भाग लेकर देश की नागरिक इच्छा शक्ति का अनूठा प्रदर्शन किया। उस परेड के चित्र आज भी उपलब्ध हैं। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सेना को युद्ध सामग्री उपलब्ध कराने में संघ से सेवाएं प्राप्त कीं। शास्त्रीजी ने दिल्ली की यातायात व्यवस्था एवं कानून व्यवस्था संघ के हाथों में सौंप दी। 1971 के भारत-पाक युद्ध में इंदिरा गांधी के समय संघ देश का पहला और एक मात्र सबसे बड़ा संगठन था जिसने घायल सैनिकों के लिए रक्तदान शिविरों का आयोजन किया तथा घायल सैनिकों को रक्त की कोई कमी नहीं होने दी। गोलवलकर जी के निधन पर, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जिन भाव-भीने शब्दों में उन्हें श्रद्धांजलि दी थी, उन शब्दों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। संघ आज भी अपने समाज की सेवा करने के लिए तत्पर रहता है। चाहे, कोई प्राकृतिक आपदा हो, ट्रेन, सड़क, दुर्घटना हो सब कहीं संघ के स्वयंसेवक जीजान से सेवा करते हैं। मैं तो राहुल गांधी को कहता हूं कि यदि संघ समझना हो तो संघ का इतिहास पढ़िये, शाखा में आकर कबड्डी खेलिए आप संघ समझ जाएंगे।