सामाजिक

आधुनिक समाज में स्त्रियों की स्थिति

बेशक शारीरिक रूप से पुरुष एक नारी से सबल होता है, किन्तु यदि वर्तमान और आधुनिक परिस्थिति में देखा जाए तो नारी पुरुषों पर भी भारी पड़ेगी, ये केवल हमारी सोच और नज़रिए का कमाल है। प्राचीन काल में जब एक पुरुष को  जो बचपन से ही बेहद लाड़ प्यार में पलता है ।उसे मानसिक और शारीरिक दोनों सुरक्षा परिवार में दिया जाता है, जब कि वहीं पर लड़कियों को यह कह कर छोड़ दिया जाता है कि कौन सा इसे घर से बाहर जाना है?
लड़कियों के जन्म पर भी लोग दुखी होते थे। घर परिवार में लोग मायूस हो जाते, किन्तु बेटे के जन्म पर खुशियां मनाई जाती यहां तक कि ऐसी परंपरा थी कि लड़के के
जनम पर सोहर मंगल होता और लड़कियों के जन्म पर नहीं। खान पान शिक्षा दीक्षा, रहन सहन हर बात में अंतर होता। कौन सा कुदाल  चलाना है लड़की को??? ,अरे घर ही तो चलाना है,  हो गया चिट्ठी पत्री लिखने भर पढ़ ली,  शादी करके पराए घर ही तो जाएगी। वैसे भी बेटियां दूसरे की अमानत होती है !!
ये पुराने परिवेश की बातें थी। पर आज माहौल बदला लड़के लड़की में अंतर मिट गया बेशक पुरुष शारीरिक रूप से बलवान है, प्रकृति ने महिलाओं और पुरुषों की संरचना में अंतर किया है, नारी कोमल अंगों वाली है परन्तु नारी किसी भी मामले में पुरुषों से कमज़ोर नहीं।कुछ काम सिर्फ नारियां ही कर सकती है पुरुष नहीं। प्राचीन मान्यताओं पर चलना कहां तक उचित है? आज के बदलते परिवेश में हमें अपनी प्राचीन धारणाओं को बदलना होगा ।
आज जितनी जिम्मेदारी पुरुष निभाते हैं उनसे कहीं ज्यादा शिक्षित महिलाएं निभा रही हैं।  पुरुषों को सिर्फ़ कमा कर पैसा लाना होता है, जब कि नारियां बच्चों को भी जन्म देती हैं, उनका बेहतर पालन पोषण भी करती हैं, घर बाहर सब संभालती है और साथ में यदि नौकरी पेशा वाली हो तो  भी सुचारू रूप से  घर बाहर सब व्यवस्थित करती  है।
इतनी जिम्मेदारियों को साथ ले कर चलने में तनाव की स्थिति भी आती है, परन्तु पूरे हौसले से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करती हैं। नहीं घबराती अपनी जिम्मेदारियों से!!!
चाहें विज्ञान का क्षेत्र हो खेल का, राजनीति का क्षेत्र हो या शिक्षा का, कृषि का या स्वास्थ्य का  बखूबी अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं महिलाएं। समय काल और परिस्थिति के अनुसार हमें आज इस अंतर को मिटाना है।और यह धारणा भी कि महिलाएं पुरुषों से कमज़ोर होती है और कुछ निर्धारित कार्य ही कर सकती हैं।
शहरी क्षेत्रों में तो आज सभी लोग जागरूक हो गए हैं ।लड़के लड़की में भेद करना काफी कम हो गया, परन्तु ग्रामीण इलाके में आज भी लड़कियों को बोझ समझा जा रहा, जब की यह उचित नहीं है। आज भी  गांवों में कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है। जिसकी वजह से गरीबी, अनियोजित परिवार, स्वास्थ्य और पिछड़ेपन की समस्याएं बढ़ रही है। अशिक्षित बेटियां बाल मजदूरी, शिक्षा और मौलिक अधिकारों से।ग्रामीण महिलाएं आज भी वंचित हैं।
अब हमें गांव देश और राष्ट्र के विकास में पुरुष और नारी को समान रूप से अधिकार मिलने चाहिए, ना कि समाज द्वारा बनाए गए मान दंडों या मानकों के आधार पर!!!
 आज की नारी उन सभी क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही है जहां पुरुष खड़े हैं। तो फ़िर उन्हें अवसर से वंचित रखना कहां तक उचित है??
राष्ट्र के विकास के लिए नारी और पुरुष दोनों का कांधे से कांध मिला कर चलना ही महत्वपूर्ण बात है। योग्यता के अनुसार दोनों का सहयोग अपनी अपनी यथा संभव आवश्यक है।
हमें रूढ़िवादिता के प्राचीन मान्यताओं को मिटाना होगा तभी हम विकास के पथ पर अग्रसर हो पाएंगे। आधुनिक प्रगति और बुनायादी विकास के लिए आज हमको अपनी सोच बदलनी होगी स्त्री पुरुष भेद को मिटा कर सभी को सामान  शिक्षा और विकास के अवसर प्रदान करने होंगे।
 आज हमारा देश विभिन्न तरह राजनीतिक संक्रमण और वैश्विक संकटों का सामना कर रहा है, ऐसे में हमें बेहतर प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है अतः समाज के सभी पहलुओं पर महिलाओं के सार्थक विचार और साझेदारी की अति आवश्यकता है।
समाज द्वारा बनाए गए रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ कर महिलाओं के लिए संवैधानिक, सामाजिक और पारिवारिक रूप से समृद्ध बनाना, नारी सशक्तीकरण के नियमों को बुनियादी तौर पर लागू करना, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा के लिए उचित प्रावधान और प्रारंभिक सुविधाएं उपलब्ध कराना ये सरकार और समाज का कर्तव्य बनता है।
आज हम पुरुष और महिलाओं में भेदभाव समाप्त करके इन कुप्रथाओं से हम अपने समाज को सुदृढ़ बना सकते हैं और नकारात्मक प्रभाव से भी बचा सकते हैं
सरकारी योजनाएं तो अक्सर कागज़ों में ही सिमट कर रह जाती हैं और सरकार द्वारा लागू कानून धाराएं मात्र औपचारिक व्यवस्थाएं बन कर रह जाती हैं। हम निर्भर रहते हैं उस कानून पर जो बन्द आंखो से न्याय करता है। लेकिन जब तक हम और हमारा समाज जागरूक नहीं होगा तो कानून क्या करेगा? ज़रूरत है हम सबको अपनी
मानसिकता और दृष्टिकोण बदलने की।एक विकसित समाज की महिलाएं जब सुदृढ़ और सशक्त होगी तो समाज और राष्ट्र  भी शक्तिशाली होगा। जब हमारी रूढ़िवादी धारणाएं समाप्त होंगी तो समाज और नारी सशक्त होगी।
नारी का सम्मान होगा, देश का उत्थान होगा।
पुरुषों की संवेदनशीलता नारी का सम्मान  होगा।
— मणि बेन द्विवेदी

मणि बेन द्विवेदी

सम्पादक साहित्यिक पत्रिका ''नये पल्लव'' एक सफल गृहणी, अवध विश्व विद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर एवं संगीत विशारद, बिहार की मूल निवासी। एक गृहणी की जिम्मेदारियों से सफलता पूर्वक निबटने के बाद एक वर्ष पूर्व अपनी काब्य यात्रा शुरू की । अपने जीवन के एहसास और अनुभूतियों को कागज़ पर सरल शब्दों में उतारना एवं गीतों की रचना, अपने सरल और विनम्र मूल स्वभाव से प्रभावित। ई मेल- [email protected]

One thought on “आधुनिक समाज में स्त्रियों की स्थिति

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुंदर लेख लेकिन जब हम हमारे समाज की बात करते हैं तो वोह लोग कौन हैं ? वोह लोग हम ही हैं .फिर अब तक हम क्यों नहीं यह ढून्ढ पाए कि अभी तक घर में बेटी का पैदा हो जाना एक बोझ क्यों समझा जाता है . मेरी सोच युवा अवस्था से ही ऐसी थी कि मैं सोचता रहता था कि बेटी की शादी में दान दहेज देना ही एक कारण है . दूसरा कारण है, सास से दुर्विव्हार . सास कौन है ! औरत ही तो है, फिर क्यों वोह बहू से दुर्विव्हार करती है जब कि वोह खुद भी एक औरत है ! आज मैं ७८ का होने वाला हूँ और १९६७ में हमारी शादी हुई थी . घर वालों के साथ झगड़ कर मैंने दस ब्रातिओं और बगैर किसी दहेज़ के शादी रचाई थी . कुछ लोगों ने हमें कंजूस कहा था , कुछ ने मुझे शाबाशी दी थी . हमारी जिंदगी बहुत अच्छी बीती और आगे हम ने अपने बच्चों की शादीआं भी बहुत साधारण खर्च करके की . वोह भी अपने घर में सुखी हैं .इस के आगे अपने पोते पोतिओं की शादीआं भी यहाँ वोह चाहें वहीँ करेंगे चाहे उन के साथी किसी भी जात धर्म के हों, उन को पूरी आजादी है . अगर दस लोग इकठे हो कर किसी मंदिर गुर्दुअरे में शादी कर दें तो बेटी की किया समस्या रह जायेगी . बातें तो बहुत हैं और मेरा कॉमेंट बहुत बड़ा हो जाएगा . बस यही कहूँगा की जब तक हम बेटी पैदा होने का संबंद आर्थिक स्थिति से जोड़ते रहेंगे बेटी के पैदा होने पर रोते ही रहेंगे .

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