कहानी

कहानी – अधूरी शादी

नंदिनी आज लाल सुर्ख जोड़े में बहुत ही सुंदर लग रही थी । बड़ी बड़ी आँखे,घनी भौंहे, दूध जैसा सफेद रंग , पतले पतले होंठ, कमर तक काले घने बाल स्वर्ग की अप्सरा से कम नही ,इतनी सुंदर थी नंदिनी।
जो भी देखता बस देखता ही रह जाता था। कॉलेज में तो युवा दिलों की धड़कन थी। सब नंदिनी पर अपनी जान छिड़कते थे पर नंदिनी अपने काम से काम ही रखती थी।
 नंदिनी के पिता वीरेंद्र जी जयपुर में ही  सरकारी अध्यापक थे । जब नंदिनी 11 वर्ष की थी एक बीमारी में माँ चल बसी थी ।तब से वीरेंद्र जी ने ही माता पिता का प्यार दिया और उसका ध्यान रखा था। उसकी शादी पर वे भी बहुत ही खुश थे । काफी मेहमान भी आ चुके थे । नंदिनी के माँ नही होने के कारण वीरेंद्र जी ने अपने दूर की एक बहन को शादी के काम के लिए बुला लिया था। शादी वाले दिन वीरेंद्र के मुंबई वाले मित्र आलोक जी और उनकी पत्नी वंदना जी और दोनो बेटे राजन और रितेश भी आ गए। नंदिनी वंदना जी को अपनी माँ समान मानती थी ।माँ के बाद प्यार करने वाली ये एक ही माँ थी। उन्हे देख कर वह बहुत ही खुश हुई।
शाम होने वाली थी । बारात आने का समय हो रहा था। सभी खुशी खुशी बारात के स्वागत की तैयारी कर रहे थे।
तभी फोन पर बात करते करते वीरेंद्र जी रोने लगे और अपनी छाती पकड़ ली । आलोक जी वंदना जी और दूसरे मेहमान सब दौड़े दौड़े आए और उनको संभाल लिया अंदर कमरे में ले गए दूसरे कमरे में नंदिनी रोने लगी थी । वंदना जी उसे चुप करा रही थी । आलोक जी वीरेंद्र से पुछ रहे थे कि क्याहुआ? क्या हुआ? तब वीरेंद्र जी ने बताया कि-” लड़के वालो ने दस लाख की माँग रखी है और यदि हम दस लाख नही देते है तो बारात नही लाएंगे ।” वह कह रहे थे कि- “अब क्या करू। “पहले जब शादी की बात हुई तो बिना दहेज के शादी का बोला था और अब जो इतनी रकम माँग रहे है नही दे तो शादी भी नही होगी ।वीरेंद्र जी रोते हुए बोले जा रहे थे “अब क्या करें। “हल्दी चढ़ी लड़की को कुँवारी भी नही रख सकते थे। किसी के कुछ समझ नही आ रहा था क्या  करें ?क्या न करें?
तभी वंदना जी ने आलोकजी को बाहर बुलाया और कहा कि-” नंदिनी की शादी राजन से करवा दे । ” वंदना जी की शुरू से ही बहुत इच्छा थी कि नंदिनी उनके घर की बहू बने पर राजन हाँ ही नही करता था  जबकि रितेश और नंदिनी बहुत ही अच्छे दोस्त थे दोनों पढ़ते भी बराबर की कक्षा  में । आलोक जी और वंदना जी छुट्टियों में रितेश के साथ आते रहते थे राजन हॉस्टल में रहने के कारण नही आता था। रितेश और नंदिनी में पटती भी बहुत थी ।
राजन से शा़दी की बात करते ही राजन बहुत ही गुस्सा हुआ था ,उसने मना किया और कहा कि -“रितेश से शादी करा दे वे दोनों अच्छे दोस्त भी है पर मैं नही शादी कर सकता हूँ ।” आलोक जी ने समझाया तब वह शादी के लिए मान गया पर राजन के लिए शादी का कोई मतलब नही था । उसने तो सिर्फ अपने पिता का कहना माना था। उधर वीरेंद्र जी को अस्पताल ले जाया गया उन्हे हृदयाघात आया था। उनकी साँसे अटकने लगी थी वे लगातार  रोए जा रहे थे ।जब उन्हे बताया गया कि-” राजन और नंदिनी की शादी हो रही है तो उन्हे चैन की साँस आयी। “घर पर फेरे हो रहे थे नंदिनी भी लगातार रोए जा रही थी। फेरे संपन्न हुए उधर अस्पताल में वीरेंद्र जी ने अपनी अंतिम सांसे ली । सुबह घर ला कर अंतिम संस्कार किया गया।
अब नंदिनी के माता पिता दोनों ने संसार छोड़ दिया उसका कोई नही रहा । जयपुर में सारा काम खत्म कर आलोक जी और  वंदना जी नंदिनी को मुंबई ले आए थे। घर पहुँचते ही सब अंदर आने लगे तो उन्होने राजन और नंदिनी को दरवाजे पर ही रोक लिया था। राजन गुस्सा होने लगा तो वंदना जी कहा कि -“नयी बहू को बिना स्वागत और रस्मो के कैसे अंदर ले आए।बहू तो घर की लक्ष्मी होती है। ” रस्में हुई तो राजन अपने कमरे में जाने लगा तो वंदना जी ने कहा कि -“नंदिनी को भी अपने कमरे में ले जाए। “तो वह गुस्सा होते हुए बोला कि -“वह इस शादी को नही मानता तो नंदिनी एकदम से डर गयी । “उसने साफ कहा कि -“यह मेरे कमरे में नही रहेगी ।” फिर रितेश उसे अपने कमरे में ले गया  रितेश और नंदिनी तो बचपन के दोस्त थे । रितेश ने कहा कि -“कोई  बात नही नंदिनी जब भाई  का गुस्सा शांत हो जाएगा तो वह खुद तुम्हे अपने कमरे में लेकर जाएगा। आज तो तुम मेरे कमरे में रहो कल तुम्हारे लिए दूसरा कमरा तैयार करा देंगे। “
नंदिनी फिर उसी कमरे में रहने लगी थी। घर वाले उसका पूरा ध्यान रखते थे ।उसके ग्रेजुएशन का भी अंतिम साल था। उसकी तैयारी करने लगी थी जयपुर से अपनी सभी किताबें लेकर ही आयी थी। वह अपने कमरे में पढ़ाई करती थी और घर के काम में वंदनाजी की मदद करती थी। आलोक जी और वंदनाजी अपनी बेटी से भी बढकर उसे मानते थे । रितेश भी उसका ध्यान रखता था जबकि राजन उसकी तरफ देखता भी नही था । सच तो यह था कि अभी तक उसने ढंग से नंदिनी की  तरफ देखा भी नहीं था। इस तरह से दो तीन महीने निकल गए नंदिनी सबकी आँखो का तारा बन गयी ,सभी  के साथ बहुत ही प्रेम से रही थी । अभी भी वह दूसरे कमरे में ही रह रही थी । एक दिन नंदिनी बालकनी में खड़ी अपने बाल सँवार रही थी तभी उधर से राजन निकला आज पहली बार उसने नंदिनी की तरफ देखा था नंदिनी तो वैसे भी बहुत ही सुंदर थी ,किसी जन्नत की हूर से कम नहीं। राजन तो उसे देखता ही रह गया । नंदिनी अपनी ही धुन में खड़ी सुबह के सूरज को ही निहार रही थी । उसे नही पता था कि राजन उसे चोरी से देख गया है।
थोड़ी ही देर में राजन वहाँ से चला गया था । आज रात के खाने के समय वह सब के साथ था। वंदना जी ने उसे देखा तो वो हैरान रह गयी थी क्योकि वे हमेशा से ही रात का खाना साथ ही खाते थे पर जब से नंदिनी और राजन की शादी हुई तब से राजन ऑफिस से आते ही अपने कमरे में ही रहता और खाना भी अपने कमरे में ही खाता था घर में भी सबसे कम ही बात कर रहा था।
खाने के समय आज राजन को देख कर सभी बहुत ही खुश हुए । धीरे -धीरे राजन का गुस्सा शांत हो गया था। शादी को भी करीब पाँच महीने हो गए थे पर अब वह नंदिनी को देखने लगा था और वह इन सब से बेखबर थी कि राजन मन ही मन उसकी तरफ खींचा चला आ रहा है। इस तरह से एक डेढ़ महीना निकल गया । अब नंदिनी को अपने अंतिम वर्ष की परीक्षा के लिए जयपुर जाना था वह परीक्षा के लिए चली गयी । वंदना जी उसके साथ नही जा सकी थी इसलिए रितेश गया था उसके साथ।
 जैसे ही ऑफिस से राजन घर आया तो थोड़ी देर तो इधर उधर देखा पर कही भी नंदिनी नही दिखी । रोज तो राजन  घर में उसकी हँसी सुनता था। वह माँ से और रितेश से खुल कर बातें करती और इस घर को अपनी हँसी से रोशन कर दिया । वैसे भी इस घर में बेटी नही थी तो नंदिनी ने बेटी की कमी को पूरा किया था। आज राजन को नंदिनी नही दिखी तो वह बैचैन हो गया । उसे आज दिल में उसके लिए कुछ महसूस हुआ था। खाने खाते वक्त तो माँ से पुछ ही लिया कि -“नंदिनी कही नही दिख रही कहाँ गयी है। ” जब माँ से यह पूछा तो बहुत ही खुश हुई माता रानी को धन्यवाद कहा।  उन्होने बताया कि वो अपनी परीक्षा के लिए जयपुर गयी है। करीब एक महीने बाद नंदिनी जयपुर से वापस आयी । शाम के समय राजन घर आया तो नंदिनी को देख कर खुश हुआ और उससे पूछा कि-” उसके पेपर कैसे हुए ।”आज पहली बार राजन ने नंदिनी से बात की थी। अब कभी कभी वह नंदिनी से बात कर लेता था ।  उसे नंदिनी अब अच्छी लगने लगी थी। नंदिनी भी उसे जवाब दे ही देती थी। दस दिन बाद नंदिनी का जन्मदिन था। राजन ने माँ को सब बता दिया था कि वह नंदिनी को प्यार करने लगा है वह उसे कैसे बताए वह माफी माँग कर उसे अपनाना चाहता है । यह बात सुनकर वंदना जी बहुत ही खुश हुई जैसे मुँह मांगी मुराद पूरी हो गयी।  माता रानी ने सब अच्छा कर दिया। माता रानी की कृपा से सब अच्छा हो गया।  सभी यही चाहते थे।
जन्मदिन आ गया नंदिनी को यह बात नही बताई गयी। उसे आज अपने माता पिता की याद आ रही थी और सोच रही थी कि आज यदि वे होते तो मेरा जन्मदिन बहुत ही धूमधाम से मनाते। वह रो रही थी। शाम तक भी उसे नही बताया गया जन्मदिन की पार्टी होटल में रखी गयी थी। जब उसे ले जाना था तो यही बोला कि किसी की पार्टी में जाना है उसके होटल में प्रवेश करते ही हैप्पी बर्थ डे की आवाज सुनते ही वो बहुत ही खुश हो गयी और वंदनाजी के गले लग कर खुब रोयी और जन्मदिन के लिए धन्यवाद बोला। पार्टी के साथ ही राजन ने खुशी खुशी उसे अँगूठी पहनाई और आपस में माला पहना कर राजन ने उसे अपना लिया। आज नंदिनी के प्यार की जीत हो गयी। आज उसकी शादी पूरी हुई इतने दिन तो उसकी अधूरी शादी थी। माता रानी की कृपा से फिर वो हँसी खुशी अपना जीवन यापन करने लगे थे । सही कहा गया है कि भगवान के घर देर है अँधेर नही।

मंजु लता

पिता का नाम -बद्री सिंह चौहान माता का नाम - मुन्नी देवी शिक्षा - M.A.hindi , Education , B.ed सम्प्रति - व्याख्याता हिन्दी ,लेखिका अनुभव - 11 वर्षो से निरंतर पुरस्कार - Best teacher award प्रणेता साहित्य द्वारा सर्वश्रेष्ठ पद्य रचना प्रशस्ति पत्र प्रकाशित रचना- दैनिक नवीन कदम काव्यधारा में कविता ' बसंती बहार' उत्कर्ष मेल पाक्षिक में कविता ' गौरी की शिव वंदना' और कहानी अनूठा प्रेम' विजय दर्पण टाइम्स डेली में कविता रवि का उजियारा, नारी कभी न हारी अभ्युदय हिन्दी मासिक पत्रिका मे लघु कथा 'होली के रंग' दैनिक आधुनिक राजस्थान कविता ' मैं अबला नारी नहीं हूँ ' और नारी का महत्त्व राष्ट्रीय पाक्षिक समाचार पत्र ' की लाइन टाइम्स' में ' नारी कभी न हारी ' दैनिक इंडिया प्राइम टाइम्स में 'नारी का महत्त्व पता - प्लॉट न. 163 , विशाल नगर नवदुर्गा झालामंड जोधपुर (राज.) pincode- 342005 फोन न. - 8949964672