हाय रे पूर्णियां …
आए दिन अखबार और न्यूज़ चैनलों के अपडेट ने हर मां बाप की धड़कनें तेज़ कर के रख दी है. आए दिन लूट खसोट, छिनताई ,कत्ल ,ड्रक्स , शराब तस्करों की घटनाओं से अखबारों और चैनलों की खबरें आम लोगों की धड़कन को जैसे रेल पटरी की तेज़ रफ़्तार से धड़का रहा है और ऐसे में लोग अपने अपने घरों के बच्चों को लेकर इतनी चिंतित होकर जीने लगें हैं कि अपने बच्चों पर शक्त पाबंदी लगा रहें हैं. यहां तक कि अपने बच्चों के सहपाठी या उनके आस पास के बच्चों की मित्रता को भी शक की निगाह से देखने लगें हैं. यह सोचकर कि न जाने कौन बच्चा भीतर से कैसा हो. न जाने किनकी वजह से अपना बच्चा भी कल को किसी मुश्किल मुसीबत में न पड़ जाएं. यह सारी चिंताएं आज़ बच्चों के अभिभावकों का नींद हराम करले है.
और दूसरी तरफ बच्चों का बचपन यह सोचकर कुंठित हो रहा है कि उनके अभिभावक उसके हर दोस्त मित्रों को शक की निगाह से देखते हैं और उनसे बात चीत से लेकर उनके साथ कही आने जाने पर भी रोक लगा रहे हैं.
अभिभावक हर पल यह सोचकर जीते हैं आज़ की किस से बच्चों को बचाकर रखा जाएं और बच्चे की मनोदशा ऐसी की वो अपने हम उम्र के साथ कुछ पल का आज़ वक्त बिताए तो अभिभावक को परेशानी. एक तरफ़ इस डर और खौंफ के साये में पल पल अभिभावक जी और मर रहे हैं तो दूसरी तरफ बच्चों का बचपन कही न कही से अभिभावकों के बंदिशों के घेरे में सिमटकर रह गया है. लेकिन इन सब सोच फिकर से दूर आज़ की मीडिया कुछ अच्छी या फिर युवा पीढ़ी के लिए ज्ञानवर्धक चीजों को पसोरने के बजाय अपनी टी आर पी को चमकाने के लिए सिर्फ और सिर्फ ऐसे ही घटनाओं के लिए अपने अखबारों या चैनलों का इस्तेमाल कर रहे. इन्हें न तो अभिभावकों की फ़िक्र है और न बच्चों की मनोदशा की. ऐसी घटनाओं को अंजाम देने वाले दो पैसों की लालच में खुश हो रहें हैं तो दूसरी तरह मीडिया वाले अपनी मीडिया को चमका कर चांदी सेक रहें हैं, बीच में आम जन बेहाल.
— अंजु दास गीतांजलि