संस्मरण

मेरी माँ की रसोई में मेरा पहला कदम

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बात 2003 की है!में तब बी०अ० फ़र्स्ट ईयर में आई ही थी!हॉस्टल से घर में राखी की पहली बार छुट्टियाँ मानने घर आई थी!मम्मी ने पूछा क्या बनाऊँ,मैंने कहा आलू के पराठे!मम्मी बोली सुबह तो दम आलू खाए हें,आलू के पराठे सुबह बना दूँगी!में उनसे रूठ कर बेठ गई!वो भी ग़ुस्से में थीं,बोली जो खाना है खुद भी बनना सीख!में भी बोली हाँ-हाँ बना लूँगी खुद!हाथ-पैर फूल गये मेरे!आज तक चाय तक नहीं बनाई थी,गैस तक जलानी नहीं आती थी,कभी काम ही नहीं पड़ा!वो तो शुक्र था ईश्वर का की फ़्रिज में कम से कम उबले आलू मिल गये!मम्मी के सुबह के दम आलू के बच गये होंगे!मुश्किल से आटा लगाया!जैसे-तैसे पराठा बेला,तवे पर डाला तो कम से कम 20 टुकड़े हो गये!पापा को परोसा तो बोले वाह आज तो पराठे के टुकड़े भी नहीं करने पड़े!किचन हरताल करने के बाद मम्मी की आंख़ो में आँसू थे!फिर मुझे उन्होंने पराठे बनाने सिखाये!उसके 2 महीने बाद वो अड्मिट हुई हॉस्पिटल में,वहाँ से उन्होंने मुझे फ़ोन पर पत्तागोभी की सब्ज़ी बनानी बताई!और 10 दिन बाद तो वो ईश्वर के घर हाई चली गई!मम्मी के हाथ के खाने का स्वाद कभी नहीं भूल पाती आज भी!बचपन में पापा कहते थे अपनी बेटी को खाना बनना सिखाओ,तब मम्मी बोलती थी ज़िंदगी भर यही तो करना है,अभी इसको पड़ने दो!उनके जाने के बाद कॉलेज हॉस्टल से घर आई हुई थी एक साल बाद तब मैंने खाने में पत्तागोभी की सब्ज़ी बनाई तब मेरी दादी बोली तेरे हाथ में तो तेरी माँ का स्वाद है,सब्ज़ी इतनी सवादिस्ट बनी है!माँ के हाथ के अचार,पापड़,सब कुछ बोहोत याद आता है!मेरी माँ को मासी,मामा,पापा सब मज़ाक़ में हलवाई ही बोलते थे,वो इतना स्वादईस्ट खाना और मिठाइयाँ बनती थीं!ये थी मेरी पहली रसोई जिसने एक आलू के पराठे के सिकते वक्त 20 टुकड़े हुए!

धन्यवाद
— डॉक्टर मिली भाटिया आर्टिस्ट

डॉ. मिली भाटिया आर्टिस्ट

रावतभाटा, राजस्थान मो. 9414940513