कविता

हाँ,मैं आऊँगा

मैं क्यूँ आऊं

तुम्हारी महफ़िल में

क्या तुम्हारी अपनी लय है

अपने राग हैं

मैं क्यूँ झुमूं

तुम्हारी बनावटी दुनिया में

क्या तुम्हारी अपनी राह है

अपना साज है

मैं जानता हूँ

तुम्हें दाद चाहिए

तालियाँ पीटने वाले चाहिए

वाहवाही चाहिए

इनसब को बटोरकर

कहीं सम्मानित होंगे

कहीं पुरस्कृत होंगे

मैं नहीं आऊंगा

ऐसी संगत में

ऐसे समागम में

जिनकी अपनी लीक हो

जो बंधी-बंधाई राह पर हो

हाँ,मैं आऊँगा वहाँ

जहाँ जिनके अपने राग हैं

जिनकी अपनी लय है

बिना साजोसामान

जो अपना गीत गाएं

अपने राग सुनाएं

एकमेव होकर समूह में

बिना किसी भेद के

मिलजुलकर

कोयल अपना गीत सुनाती

चिड़िया रानी चहचहाती

पक्षी करते कलरव

पवन भी साज बजाता

फूल और कलियाँ संग मुस्काते

पेड़-पौधे लहलहाते

भंवर गुनगुन करता

नदियाँ कल-कल करती

हर मौसम-हर पल

हाँ,मैं वहीं आऊँगा

बजाऊँगा ताली

दूंगा दाद

करूँगा वाह-वाह

और झूम उठूँगा

प्रकृति की गोद में बैठकर।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009