हाँ,मैं आऊँगा
मैं क्यूँ आऊं
तुम्हारी महफ़िल में
क्या तुम्हारी अपनी लय है
अपने राग हैं
मैं क्यूँ झुमूं
तुम्हारी बनावटी दुनिया में
क्या तुम्हारी अपनी राह है
अपना साज है
मैं जानता हूँ
तुम्हें दाद चाहिए
तालियाँ पीटने वाले चाहिए
वाहवाही चाहिए
इनसब को बटोरकर
कहीं सम्मानित होंगे
कहीं पुरस्कृत होंगे
मैं नहीं आऊंगा
ऐसी संगत में
ऐसे समागम में
जिनकी अपनी लीक हो
जो बंधी-बंधाई राह पर हो
हाँ,मैं आऊँगा वहाँ
जहाँ जिनके अपने राग हैं
जिनकी अपनी लय है
बिना साजोसामान
जो अपना गीत गाएं
अपने राग सुनाएं
एकमेव होकर समूह में
बिना किसी भेद के
मिलजुलकर
कोयल अपना गीत सुनाती
चिड़िया रानी चहचहाती
पक्षी करते कलरव
पवन भी साज बजाता
फूल और कलियाँ संग मुस्काते
पेड़-पौधे लहलहाते
भंवर गुनगुन करता
नदियाँ कल-कल करती
हर मौसम-हर पल
हाँ,मैं वहीं आऊँगा
बजाऊँगा ताली
दूंगा दाद
करूँगा वाह-वाह
और झूम उठूँगा
प्रकृति की गोद में बैठकर।