आमंत्रण स्वीकार करो
आमंत्रण है दिया तुम्हें स्वीकार करो तुम,
मन मधुबन पर आ कर अब अधिकार करो तुम।
फूल खिले जो प्रेम भाव का महके उपवन,
बन भँवरा घन प्रेम को अब गुलजार करो तुम ।
आमंत्रण…..
दिखा दिया जो सपन मिलन का इन आँखों को,
तोड़ सपन अब प्रेम से ना इंकार करो तुम।
आमंत्रण….
विरह अगन में जलता मन है भटक रहा अब,
चूम अधर को प्यार का अब इज़हार करो तुम।
आमंत्रण है…..
प्रेम पथिक जो बन कर तुमने साथ दिया था,
छोड़ साथ को प्यार का ना संहार करो तुम।
आमंत्रण है….
हृदय पटल पर छपा हुआ है नाम तुम्हारा,
मिटा प्रेम का भाव न अत्याचार करो तुम ।
आमंत्रण है…
— करुणा कलिका