जागो जागो, मदन गुपाल,
स्वीकारों यह, पूजन थाल |
माखन मिसरी, भोग महान,
खाओ आकर, हुआ विहान ||
मोर पंख का, मुकुट ललाम,
शोभा पर है, मोहित काम |
कर में मुरली, तिलकित भाल,
फूलों जैसे, कोमल गाल ||
सबको करता, मोहित रूप,
सबसे सुन्दर, और अनूप |
दिखा मुझे दो, वह घनश्याम,
आज सजा दो, आकर धाम ||
तुम राधा के, हो दिलजीत,
मेरी मीरा, जैसी प्रीत |
कविता लिखती, रहूँ विनीत,
तुम्हें मनाती, गाकर गीत ||
तुम हो ग्वालिन, के चितचोर,
सब के दिल के, माखन चोर |
रास रचाओ, आकर साथ,
कर दो मुझको, आज सनाथ ||
सुन लो! सुन लो, हे तिरवीर !
होना बिलकुल, नहीं अधीर |
कृष्ण तुम्हारे, जब तक साथ,
तुम हो सकतीं, नहीं अनाथ ||
— डॉ राजश्री तिरवीर