भजन/भावगीत

कविता- गुपाल छन्द

जागो जागो, मदन गुपाल,
स्वीकारों यह, पूजन थाल |
माखन मिसरी, भोग महान,
खाओ आकर, हुआ विहान ||
मोर पंख का, मुकुट ललाम,
शोभा पर है,  मोहित काम |
कर में मुरली, तिलकित भाल,
फूलों जैसे, कोमल गाल ||
सबको करता, मोहित रूप,
सबसे सुन्दर, और अनूप |
दिखा मुझे दो, वह घनश्याम,
आज सजा दो, आकर धाम ||
तुम राधा के,  हो दिलजीत,
मेरी  मीरा,  जैसी   प्रीत |
कविता लिखती, रहूँ विनीत,
तुम्हें मनाती,  गाकर गीत ||
तुम हो ग्वालिन, के चितचोर,
सब के दिल के, माखन चोर |
रास रचाओ,  आकर साथ,
कर दो मुझको, आज सनाथ ||
सुन लो! सुन लो,  हे तिरवीर !
होना बिलकुल, नहीं अधीर |
कृष्ण तुम्हारे, जब तक साथ,
तुम हो सकतीं, नहीं अनाथ ||
— डॉ राजश्री तिरवीर

डॉ. राजश्री तिरवीर

जन्म बेलगांव, कर्नाटक में हुआ हैं। आप मराठा मंडल कला और वाणिज्य महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापिका के रूप में कार्यरत हैं।आपने कर्नाटक से हिंदी में एम.ए, पी.एच डी, स्लेट , डी.लिट किया हैं। एम. ए में उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने से कर्नाटक विश्वविद्यालय से आपको स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया है। एक समीक्षा ग्रंथ (हिंदी के नाट्य काव्यों में मिथक) एवं एक काव्य नाटक (परित्यक्त लव-कुश) प्रकाशित हुआ हैं। छंद मंजरी काव्य संग्रह तथा ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित होनेवाला है। राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित हुए हैं। दैनिक समाचार पत्रों में हिंदी, मराठी कविताएं प्रकाशित हुई हैं। कई राष्ट्रीय -अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में प्रपत्र प्रस्तुत किया है। अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद तथा अन्य संस्थाओं से २५ से अधिक सम्मान पत्रों से सम्मानित किया गया है।