कविता

न्याय

न्याय क्या है,
होता है न्याय कहाँ?
होती है पूजा न्याय की
किस देवालय में?
विद्यालय,महाविद्यालय विश्वविद्यालय,
जहाँ इसकी पढ़ाई  होती है।
कोई न्यायालय,जो इसको व्याख्यायित
करता है हू-ब-हू।
अब तो मुझे ही देना है उत्तर,
मेरी अग्नि परीक्षा ली गई,
दाँव पर लगाई गई मैं,
चीर हरण की चेष्टा मेरे हुई।
युद्धों का कारण कहा जाता है,
मुझको।
आरोपों का बोझ ढ़ो रही हूँ
सदियों से।
मेरी भ्रूण हत्या होती है,
जलायी जाती हूँ दहेज
के नाम पर।
फिर पूजन नौ दिनों तक?
मर्यादा की शर्तें सारी
मेरे लिए सुरक्षित।
माँ,तुम मेरी पहली पाठशाला
 हो,बताओ गुर जीने के मुझे।
बनाओ मुझे योग्य
कि मैं मुझपर होते आ रहे
सारे अन्यायों के उत्तर
खुद न्यायालय में दे सकूँ,
मैं भी जी सकूँ,
अभय,प्रतिष्ठित,मानवीय जीवन।
— कृष्ण कुमार क्रांति

कृष्ण कुमार क्रांति

सहरसा, बिहार