स्त्री का कोई एक दिन निश्चित करना असंभव है
स्त्री क्षणिक नहीं… विस्तृत है
जीवन के हर क्षण में
स्त्री के स्त्रीत्व को सारा जीवन विविध रूपों में स्वीकार कर ही आगे बढ़ता हैं।
ऐसी कोई परिकल्पना नहीं जो इसे समोहित कर सके।
स्त्री प्रेम,कोमल न्यायप्रिय भावों का झरना हैं।
स्त्रीत्व, सृजन का गुण उसका गहना हैं।
स्त्रीत्व की परिभाषा में संपूर्ण सृष्टि का समन्वय हैं।
स्त्रीत्व ख़ुद में समस्त ब्रम्हांड की शक्ति का परिचायक हैं।
स्त्रीत्व प्रकृति हैं ओर प्रकृति ही सभ्यता की जननी हैं।
पुरूष भले ही महान हो परन्तु,,,,,,
प्रकृति के बिना उसका पल्लवन संभव नहीं हैं।
पृथ्वी से परे जीवन खोजा जा सकता हैं।
मगर”स्त्री के बिना”ना जीवन हैं,ना कोई पृथ्वी,,,,,,
क्योंकि स्त्री पृथ्वी को कोख में पालने की मर्यादा रखती हैं।
स्त्री बहन,पत्नी,भाभी,बेटी,और मां हैं।
क्रमशः प्यार का दर्पण,खुद का समर्पण, भावना का भंडार,प्यार का सागर और साक्षात् परमात्मा हैं।।
— सविता राजपुरोहित