स्वास्थ्य

विश्व स्वास्थय दिवस- हम कितने स्वस्थ है ?

कुछ दिन पहले की बात है। सुबह सुबह मोबाइल की घंटी बजती है। कौन है ? दूसरी तरफ एक मित्र जो पड़ोस में रहता है की पत्नी का फ़ोन है। वह घबराई हुई आवाज़ में बोलती है , ” डॉक्टर साहिब जल्दी आना , यह अचानक गिर गए है। ”

मैं अपना डॉक्टर का बैग उठाकर पड़ोस में अपने मित्र के घर जाता हूँ। देखता हूँ मेरा मित्र जमीन पर पड़ा है । वह हिलने की कोशिश करता है पर हिल नहीं पाता है, बोलना चाहता है पर बोल नहीं पाता। मैं जांच करता हूँ। उसका ब्लड प्रेशर बहुत बड़ा हुआ है। मैं इंजेक्शन देता हूँ और मित्र की पत्नी को कहता हूँ , ‘ भाभी , इसे तुरंत हॉस्पिटल ले जाना होगा। आप तैयारी करे, मैं एम्बुलेंस को फ़ोन करता हू। ” कुछ ही देर मैं एम्बुलेंस आ जाती है। मैं साथ में जाता हूँ और तब तक हॉस्पिटल में रहता हूँ जब तक उसका बेटा दुसरे शहर से नहीं आ जाता। ठीक समय पर हॉस्पिटल में इलाज़ शुरू होने के कारण अब वो पहले से बेहतर है।

जब उसकी पत्नी ने बताया की उसका पति पिछले कई वर्षों से उच्च रक्तचाप की दवाई ले रहा था और उनका ब्लड प्रेशर कण्ट्रोल में था। हां, कुछ दिनों से वो तनाव में था जिसके कारण उनका ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ गया और उन्हें स्ट्रोक यानी लकवा हो गया। वैसे वो स्वस्थ था।

तो क्या मेरा मित्र अस्वस्थ था और अगर था तो कितना ? आखिर स्वास्थ्य क्या है ? फिर अपने आप से पूछता हूँ, क्या मैं स्वस्थ हूँ ?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सम्पूर्ण स्वास्थ्य का अर्थ हैं, सिर्फ बिमारी और दुर्बलता का न होना , अपितु समर्थ व्यक्ति की वह स्थिति जिसमे वह शारीरिक, मानसिक , नैतिक और आध्यात्मिक स्थिति से दूसरो के मुकाबले बेहतर स्थिति में हो।

यह एक वास्तविकता है की संसार में जिस भी प्राणी ने जन्म लिया है वो अपनी सांसारिक यात्रा पूरी करके एक दिन मृत्यु को प्राप्त करता है। प्रश्न है कि अपने जीवन काल में वो कितना स्वस्थ था ?

अपने जीवन में मैंने कितने ही अस्वस्थ मरीजों का इलाज किया है। आम वायरल बुखार से लेकर, टाइफाइड , पीलिया, दस्त ,हृदय रोग , उच्च रक्तचाप के रोगी और न जाने कितने ही रोगियों का इलाज किया है, कितने ही जटिल से जटिल बीमारी से ग्रस्त मरीजों का ऑपरेशन और सफल इलाज होते हुए देखा हैं , लोगो को लम्बी आयु तक अच्छे स्वास्थ्य के साथ जीते हुए देखा है।

हमारे देश की विडम्बना है की स्वास्थ्य सेवा के लिहाज़ से गरीब लाचार मरीज सबसे ज्यादा पिस्ता है। मैं यह देखकर हैरान रह जाता हूँ की हर वक़्त सरकारी हॉस्पिटलों के वार्ड भरे रहते हैं और कई बार तो रास्ते में जमीन पर भी मरीज़ पड़े रहते और वही उनका इलाज भी होता । पर यह गरीब, अनपढ़ और मजबूर मरीज जाते भी तो कहा ? प्राइवेट चिकित्सा का खर्चा यह वहन नहीं कर पाते और सरकारी हॉस्पिटल में भीड़ इतनी की कई कई दिन उन के टेस्ट नहीं हो पाते और ऑपरेशन के लिए उन्हें कई दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता।

पिछले एक वर्ष से कोरोना वायरस के कारण समस्त मानवता विकट दौर से गुज़र रहा है, जो किसी चुनौती से कम नहीं है । विश्व स्वास्थ्य संगठन हर वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस , स्वास्थ्य पर समाज में जागरूकता और ध्यान केंद्रित करने के लिए मनाती है। आज जब मानवता संक्रमित और गैर संक्रमित की कई प्रकार की जटिल बीमारियों से घिरी है विश्व स्वास्थ्य संगठन का इस वर्ष का सन्देश है – एक निष्पक्ष, स्वस्थ दुनिया का निर्माण जिसमे संसार का हर प्राणी स्वस्थ हो। इसके लिए हमे अपने वातावरण को साफ़ रखना होगा और जीवन शैली बदलनी होगी।

– डॉक्टर अश्वनी कुमार मल्होत्रा

डॉ. अश्वनी कुमार मल्होत्रा

मेरी आयु 66 वर्ष है । मैंने 1980 में रांची यूनीवर्सिटी से एमबीबीएस किया। एक साल की नौकरी के बाद मैंने कुछ निजी अस्पतालों में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम किया। 1983 में मैंने पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज में बतौर मेडिकल ऑफिसर ज्वाइन किया और 2012 में सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद से रिटायर हुआ। रिटायरमेंट के बाद मैनें लुधियाना के ओसवाल अस्पताल में और बाद में एक वृद्धाश्रम में काम किया। मैं विभिन्न प्रकाशनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी में लेख लिख रहा हूं, जैसे द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदुस्तान टाइम्स, डेली पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया, वॉवन'स एरा ,अलाइव और दैनिक जागरण। मेरे अन्य शौक हैं पढ़ना, संगीत, पर्यटन और डाक टिकट तथा सिक्के और नोटों का संग्रह । अब मैं एक सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और लुधियाना में अपनी पत्नी के साथ रह रहा हूं। हमारी दो बेटियों की शादी हो चुकी है।