देश मेें कोरोना विस्फोट के पीछे घोर लापरवाही और राजनीति
देश में अब कोरोना महामारी का महाविस्फोट हो चुका है और प्रतिदिन एक लाख से अधिक लोग कोरोना पाजिटिव निकल रहे हैं। जिन लोगो को पहले कोरोना हो चुका हैं तथा जिन लोगों ने वैक्सीन के दोनो डोज लगवा लिये हैं, वे भी कोरोना संक्रमिति हो रहे हैं। आज कोरोना महाविस्फोट के पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि देश का जो सबसे प्रबुद्ध वर्ग माना जाता है, वही कोरोना के प्रति लापरवाह और गैरजिम्मेदारी वाला व्यवहार कर रहा है तथा देश की जनता को कोरोना के प्रति गलत जानकारियां देकर गुमराह भी कर रहा है। कोरोना महामारी के चलते आज देश मेें विकृत मानसिकता की राजनीति भी शुरू हो गयी है।
जब कोरोना महामारी का दूसरा विकराल दौर शुरू हुआ, तब गैर भाजपा शासित राज्य कोरोना के टीके की कमी का रोना रोने लगे और केंद्र सरकार से अतिरिक्त वैक्सीन की मांग करने लगे। कुछ मुख्यमंत्रियों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सभी के लिए टीकाकरण खोलने की मांग शुरू कर दी। कोरोना वैक्सीनेशन को लेकर विरोधी सरकारें जिस प्रकार से पत्र लिख रही हैं, वह केवल राजनीति और अपनी सरकार की नाकामी को छिपाने का प्रयास है।
यह बेहद दुर्भाग्य की बात है कि नये संक्रमण के इस दौर में भारत पहले पायदान पर आ गया है, जिसमें महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, पंजाब, मध्य प्रदेश, कर्नाटक जैसे राज्यों में संक्रमण की स्थिति चिंताजनक है। उप्र व बिहार में भी यह तैजी से फैलने लगा है। लखनऊ से लेकर रायपुर और महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के अधिकांश जिलों में आंशिक लाकडाउन का प्रारम्भ हो चुका है तथा यह भी कहा जा रहा है कि यदि देश का जनमानस नहीं सुधरा और कोरोना संक्रमण की रफ्तार इसी गति से बढ़ती रही, तो देश को एक बड़े और कड़े लाकडाउन के दौर से गुजरना पड़ सकता है। लोगों की घोर लापरवाही के ही कारण सरकार भी चिंतित हो गयी है। इसी कारण आज देश के कई जिलों में अस्पतालों में बेड फुल हो चुके हैं। वेंटिलेटर और आक्सीजन की कमी हो गयी है। अस्पतालों में लोगों की लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई हैं। यहां तक कि अंतिम संस्कार के लिए निर्धारित स्थलों में भी भारी भीड़ पहंुचने लगी है। अब कोरोना के कारण दहशत का माहौल पैदा हो गया है।
ल्ेकिन लोग अब भी मास्क न लगाने के कई बहाने व अवसर खोज रहे हैं। मास्क को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में कुछ वकीलों ने दिलचस्प व मूर्खतापूर्ण याचिका लगायी, जिसमें मास्क नहीं लगाने पर चालान काटे जाने के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की कि कई ऐसे अवसर होते हैं जब कार में अकेले होने के दौरान भी बाहर से संक्रमित होने का खतरा होता है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि कोई व्यक्ति कार में अकेले है तो कार सार्वजनिक स्थल नहीं है। कार में अकेले जाते समय भी वायरस से संक्रमित हुआ जा सकता है। इसलिए कार में अकेले होने पर भी मास्क लगाना अनिवार्य है।
वकीलों ने याचिका में दावा किया था कि अपनी निजी कार में अकेले होने के बाद भी मास्क न पहने होने पर पांच सौ रुपये का जुर्माना लिया गया। अतः न केवल चालान की राशि वापस दिलाई जाये अपितु मानसिक उत्पीडन के लिए दस लाख का मुआवजा भी दिया जाये। लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया ओर याचिकाएं खारिज कर दीं। अपने देश के लोग इस प्रकार के तर्क-कुतर्क कोरोना को लेकर कर रहे हैं। यह तो देश का तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग है जो कोरोना महामारी को लेकर भी अपनी वकालत और राजनीति को चमकाने का प्रयास कर रहा है।
कोरोना को लेकर अगर कोई सबसे सस्ती और घटिया राजनीति कर रहा है तो वह कांग्रेस नेता राहुल और प्रियका गांाधी वाड्रा, कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और महाराष्ट्र की महाअघाड़ी महावसूली सरकार भी अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए केवल पीएम मोदी को पत्र लिख रही हैं। कांग्रेस शासित राज्यों ने तो बहुत दिनों तक कोरोना योद्धाओं तक को वैक्सीन नहीं लगवायी और न ही प्रचार-प्रसार किया। लेकिन अब वही लोग कोरोना वैक्सीन की कमी का रोना रो रहे हैं। राहुल गांधी ट्विटर पर कह रहे हैं कि कोरोना टीकाकरण पर सर्वदलीय बैठक बुलायी जाये। वे कह रहे हैं कि हर भारतीय सुरक्षित जीवन का मौका पाने का हकदार है। ये वही दल हैं जिन्होंने सबसे पहले कोरोना वैक्सीन पर संदेह पैदा किया था और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को तरह-तरह की अफवाहें फैलाकर भड़काने का काम किया था और अब यही दल एक बार फिर अपनी विकृत मानसिकता की राजनीति को चमकाने के लिए चिड़िया उड़ाने के लिए निकल चुके हैं।
विरोधी दलों के मुख्यमंत्रियों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन ने भी तीखा पलटवार करते हुए पंजाब, दिल्ली, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के लोगों को लगाई गई और उपलब्ध वैक्सीन का पूरा डाटा जारी किया। उन्होंने महाराष्ट्र की विस्फोटक स्थिति के लिए वहां की सरकार को जिम्मेदार ठहराया। महाराष्ट्र में एनसीपी नेता शरद पवार ने केंद्र सरकार के प्रयासों की सराहना भी की है जिससे पता चलता है कि शिवसेना और एनसीपी के विचार अलग हैं।
आज कोरोना को लेकर हर जगह घोर लापरवाही हो रही है। जब पहली बार देश में कोरोना के कारण लाकडाउन लगाया गया था और उस समय जो दिशा निर्देश सरकार व स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी किये गये थे, वे सभी नियम और गाइडलाइन अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं। देश का कोई भी नागरिक अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करता दिखायी नहीं पड़ रहा है और सभी लोग कोविड नियमों की लगातार धज्जियां उड़़ा रहे हैं। समाज का पढ़ा लिखा वर्ग भी अब यह कह रहा है कि कोरोना नाम की कोई बीमारी नहीं है। लोग कह रहे हैं कि यह सरकार का पीएम मोदी और योगी जी का राजनैतिक प्रोपोगैंडा है।
अब चारों तरफ उसी तरह भीड़ हो रही है। लोग मास्क नहीं लगा रहे हैं। लोग हाथों को बार बार सैनेटाइज नहीं कर रहे हैं। कोरोना महामारी से बचाव में शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है यह नियम तो पूरी तरह से धराशायी हो चुका है। लाकडाउन हटने के बाद सरकार ने कुछ नियम व शर्तें बनायी थीं कि उन्हीं के अनुसार देश के धार्मिक स्थल, पर्यटन स्थल, शापिंग माल, रेस़़़़्त्रा आदि खुलेंगे। नियमों के तहत व्यापारी अपनी दुकानें व प्रतिष्ठान खोलेंगे लेकिन कहीं भी नियमों का पालन नहीं हो रहा है। आज अगर देश के हालात बिगड़े हैं तो उसके लिए यह समाज ही जिम्मेदार हैं। आज हर जगह भीड़ है। रेलों व बसों में सामान्य दिनों की तरह ही भीड़ चल रही है। स्थानीय परिवहन सेवाओं में लोग ठंूस ठूंसकर भरे जा रहे हैं। कई जगह कोविड अस्पतालों से भी लापरवाही के समाचार लगातार प्राप्त हो रहे हैं। आज यही लोग देश में दहशत के वातावरण के असली अपराधी बन गये हैं। आज कोरोना महामारी के दूसरे विकराल विस्फोट के लिए वे लोग भी जिम्मेदार हैं जो अपनी साधारण बीमारियों को छुपाकर बाजारों में बिना मास्क लगाये घूम रहे हैं।
लोग वार्ता में कह रहे हैं कि मास्क और सेनेटाइजेशन से कुछ नहीं होता, लोग इसे भी बकवास बता रहे हैं और खुलेआम कोरोना महामारी के फैलाव को नियंत्रण दे रहे हैं। अभी जब देश व प्रदेशों में बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर स्कूल व कालेजों को बंद कर दिया गया था, तब अभिभावकों का एक बहुत बड़ा वर्ग यह कह रहा था कि कोविड के नियमों का पालन करते हुए स्कूलों को खोलना चाहिए, अब वही लोग एक बार फिर सरकार की निंदा करते हुए सभी स्कूलों को बंद करने की मांग कर रहे हैं। सरकार के लिए यहां पर दोहरी परेशानी व चुनौती है। अब अगर कोरोना के कारण देश के आर्थिक हालात और बिगड़े तो इसके लिए यही लापरवाह समाज ही जिम्मेदार होगा।
— मृत्युंजय दीक्षित