लघुकथा – लाल हरी चूड़ियां
हर बार सावन में वो अपने सारे परिवार की सभी बहु बेटियों बहनो और भाभियों के लिए बाजार से लाल हरी चूड़ियां ढूंढ ढूंढ के लाती और बड़े प्यार से सबको देती और पहनाती। सबको इंतजार रहता था उसकी भेजी चूडियों का।उसे भी बहुत ही अच्छा लगता था जब तीज मनाने के लिए सभी इक्कठा होते तो सबके हाथों में एक जैसी लाल हरी चूड़ियाँ छन छन कर रही होती। लेकिन इस बार की तीज सूनी ही चली गयी। कोई चूड़ी नही छनकी।
कोई किसी से कुछ पूछ ही नही रहा था चूडियों के बारे में क्योंकि इस बार सावन आने से एक महीना पहले उसकी अपनी कलाईयां जो सूनी हो गयी थी।
— रीटा मक्कड़